पहले ठाकुर, अब ब्राह्मण विधायक आमने-सामने...यूपी में जातिगत ‘गुप्त बैठकों’ से बढ़ी योगी सरकार की टेंशन!



लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातिगत समीकरण एक बार फिर केंद्र में आ गए हैं। पहले राजपूत (ठाकुर) विधायकों की बैठक और अब ब्राह्मण विधायकों का सहभोज इन दो घटनाओं ने सत्ता के गलियारों में हलचल तेज कर दी है। कुशीनगर से बीजेपी विधायक पीएन पाठक के लखनऊ स्थित सरकारी आवास पर हुई ब्राह्मण विधायकों की बैठक को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इन “सामाजिक बैठकों” के पीछे राजनीतिक संदेश क्या है?
सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में पूर्वांचल और बुंदेलखंड के करीब 35दृ40 ब्राह्मण विधायक और एमएलसी शामिल हुए। खास बात यह रही कि अधिकांश नेता बीजेपी से थे। लेकिन अन्य दलों के ब्राह्मण नेता भी पहुंचे। खाने में लिट्टी-चोखा और फल, लेकिन चर्चा का मेन्यू पूरी तरह राजनीतिक रहा।
बैठक में यह भावना प्रमुख रही कि ठाकुर, पिछड़ा और दलित वर्ग सत्ता में मजबूत हुआ है। ब्राह्मण समाज हाशिए पर जा रहा है। उनकी आवाज सरकार और संगठन में दब रही है।यूपी विधानसभा में कुल 52 ब्राह्मण विधायक हैं, जिनमें से 46 बीजेपी के हैं। ऐसे में यह असंतोष पार्टी के लिए अनदेखा करना आसान नहीं।
बैठक में शामिल नेताओं ने भले ही इसे “सामान्य सामाजिक बैठक” बताया हो, लेकिन समय (विधानसभा सत्र के बीच) और नेताओं की संख्या इसे सत्ता के भीतर दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
हालांकि दयाशंकर मिश्र ‘दयालु’ (मंत्री) ने कहा कि भाईचारे की बैठक को राजनीतिक रंग न दें। जबकि रत्नाकर मिश्रा (बीजेपी विधायक) ने कहा कि समाज को एकजुट रखने के लिए बैठक की गई थी। अनिल त्रिपाठी (निषाद पार्टी) ने कहा कि ब्राह्मण समाज के मुद्दों पर चर्चा हुई। बैठक में पीएन पाठक, शलभ मणि त्रिपाठी, विनय त्रिवेदी, उमेश द्विवेदी, रत्नाकर मिश्रा, काशीनाथ शुक्ला, अंकुर राज तिवारी, प्रकाश द्विवेदी समेत कई नाम शामिल रहे।
विपक्ष ने इस बैठक को हाथों-हाथ लिया। शिवपाल यादव ने कहा कि बीजेपी जाति में बांटती है, ब्राह्मण समाज सपा में आए। कांग्रेस सांसद किशोरी लाल शर्मा ने कहाकि ऐसी बैठकें नहीं होनी चाहिए। ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि समस्या है तो सीधे मुख्यमंत्री से मिलें। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, यह बैठक बगावत नहीं, बल्कि चेतावनी है। 2027 से पहले बीजेपी के लिए सामाजिक संतुलन बनाए रखना बड़ी चुनौती है। अगर जातिगत असंतोष बढ़ा, तो इसका असर चुनावी गणित पर पड़ेगा।

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