आजमगढ़: कड़ी सुरक्षा के बीच सुपुर्द-ए-खाक हुआ 50 हजार का इनामी वाकिफ...अपराध की दुनिया में 10 दस वर्षो से था सक्रिय!




आजमगढ़। जिले में पुलिस और अपराध जगत के बीच वर्षों से चल रही जंग का एक बड़ा अध्याय शुक्रवार को समाप्त हो गया, जब ₹50,000 के इनामी और कुख्यात गो-तस्कर वाकिफ उर्फ वाकिब पुत्र कलाम उर्फ सलाम को एसटीएफ, स्वाट टीम और सिधारी पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में मुठभेड़ के दौरान ढेर कर दिया गया। शनिवार को फूलपुर कोतवाली क्षेत्र के नियाउज गांव में भारी पुलिस बंदोबस्त के बीच उसका शव सुपुर्द-ए-खाक किया गया।
पांच थानों की पुलिस तैनात
वाकिफ के अंतिम संस्कार के दौरान किसी अप्रिय घटना की आशंका को देखते हुए फूलपुर क्षेत्राधिकारी किरण पाल सिंह के नेतृत्व में पांच थानों की पुलिस फोर्स गांव में तैनात की गई थी। फूलपुर कोतवाल सच्चिदानंद, दीदारगंज थानाध्यक्ष राकेश कुमार सिंह, पवई थानाध्यक्ष प्रदीप कुमार मिश्रा, उपनिरीक्षक गंगाराम बिंद, महिला इंस्पेक्टर प्रियंका तिवारी सहित भारी संख्या में पुलिसबल मौके पर मौजूद रहा। गांव के प्रधान शकील अहमद और स्थानीय लोगों की उपस्थिति में वाकिफ को नियाउज कब्रिस्तान में दफनाया गया।
अपराध की दुनिया में लंबा सफर
पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, वाकिफ ने 2015 में अपने पहले गो-तस्करी के मुकदमे के साथ अपराध की दुनिया में कदम रखा था। इसके बाद उसने अपना गिरोह बनाया जिसमें अरशद, राकेश उर्फ राका, जावेद, मेराज, सुरेंद्र यादव, शहजादे उर्फ छेदी, मोहम्मद आकिल, हसीम उर्फ शेरू और शकील उर्फ भीमा जैसे शातिर अपराधी शामिल थे। यह गिरोह नेपाल बॉर्डर के रास्ते गोवंश की अवैध तस्करी में सक्रिय था। 2020 में गोरखपुर पुलिस ने उस पर गैंगस्टर एक्ट लगाया था, और अब तक उसके खिलाफ 67 मुकदमे दर्ज हो चुके थे। 2023 में गोरखपुर के एक गो-तस्करी कांड में नाम आने के बाद उस पर ₹50,000 का इनाम घोषित किया गया था।
मुठभेड़ का पूरा घटनाक्रम
शुक्रवार सुबह रौनापार थाना क्षेत्र के जोकहरा पुल के पास एसटीएफ, स्वाट और सिधारी पुलिस की टीम ने वाकिफ को घेर लिया। पुलिस पर फायरिंग करते हुए भागने की कोशिश में वह गोली लगने से घायल हो गया और बाद में उसकी मौत हो गई। उसके तीन साथी मौके से फरार होने में कामयाब रहे।
टूटा परिवार, अपराध ने छीन ली जिंदगी की शांति
वाकिफ के अपराधी जीवन ने उसके परिवार को भी तोड़ दिया। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, उसकी पत्नी ने कई वर्ष पहले ही उसे छोड़ दिया था और दोनों बच्चों के साथ मुंबई में बस गई थी। माता-पिता भी उसके आपराधिक रवैये से परेशान होकर नियाउज गांव छोड़ छाऊ गांव में रहने लगे। शनिवार को शव जब गांव लाया गया तो घर पर सिर्फ उसकी वृद्ध मां ही मौजूद थी, जिसे प्रशासन ने शव सौंपा।
पुलिस की सख्त निगरानी, ग्रामीणों में सन्नाटा
नियाउज गांव में पूरे दिन सन्नाटा पसरा रहा। पुलिस की तैनाती और सुरक्षा घेरा इतना मजबूत था कि किसी को बिना अनुमति कब्रिस्तान की ओर जाने नहीं दिया गया। ग्रामीणों ने कहा कि “वाकिफ के कारण गांव का नाम बार-बार बदनाम हुआ, अब शायद गांव को चैन की सांस मिले।”

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