लखनऊ। समाजवादी पार्टी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की जयंती पर आज पूरा प्रदेश धरतीपुत्र दिवस मना रहा है। अपने जमीन से जुड़े व्यक्तित्व और बेबाक फैसलों के लिए जाने जाने वाले मुलायम सिंह की राजनीतिक यात्रा में कई अनसुने प्रसंग छिपे हैं। ऐसे ही एक प्रसंग ने 1988 में पूरे देश के सामने उत्तर प्रदेश की प्रतिष्ठा बचाई थीकृवह भी तब, जब खुद मुलायम केंद्र में रक्षा मंत्री थे और प्रदेश में बीजेपी सरकार।
गणतंत्र दिवस परेड में हर वर्ष देश के सभी राज्यों की झांकियां राजपथ पर प्रदर्शित की जाती हैं। झांकी चुनने की अंतिम मंजूरी रक्षा मंत्रालय देता है। साल 1998 में उत्तर प्रदेश सरकार ने “आस्था का महापर्व कुंभ” विषय पर अपनी झांकी तैयार की थी। जिसमें साधु-संतों की आकृतियाँ और धार्मिक पृष्ठभूमि प्रमुखता से शामिल थीं। परेड के लिए सबकुछ लगभग तय हो चुका था, तभी अंतिम क्षणों में यूपी की झांकी को अस्वीकार कर दिया गया।
जबकि उस समय केंद्र की संयुक्त मोर्चा सरकार के “सेक्युलर” दृष्टिकोण के मद्देनज़र धार्मिक प्रस्तुति को उपयुक्त नहीं माना गया। यूपी के सूचना विभाग के अधिकारियों को झांकी हटाने के आदेश दे दिए गए। अफसरों के लिए यह केवल परेड का मामला नहीं था। यह प्रदेश की प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका था।
इसी दौरान निरीक्षण के लिए रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव का काफिला स्थल पर पहुंचा। झांकी हटाई जा रही थी, लेकिन मॉडल अभी पूरी तरह से हटाया नहीं गया था। मुलायम सिंह की नजर जैसे ही यूपी झांकी प्रभारी पर पड़ी, उन्होंने सवाल किया। “आप यहां क्या कर रहे हैं?” अधिकारी ने कहा “सर, यूपी की झांकी लेकर आया हूं। पर अनुमति नहीं मिली।” रक्षा सचिव ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि “विषय वस्तु उचित नहीं पाई गई, केवल साधु-संतों पर आधारित है।”
यह सुनते ही मुलायम सिंह का जवाब तैरती हुई आवाज़ की तरह पूरे हॉल में गूंजा “कुंभ में साधु-संत नहीं दिखेंगे तो क्या दिखेंगे?” एक पल की खामोशी के बाद उन्होंने स्पष्ट आदेश दिया। “यूपी की झांकी को चयनित झांकियों की लाइन में लगाओ।”
मुलायम सिंह के फैसले ने झांकी को न सिर्फ परेड में शामिल कराया बल्कि उस वर्ष उत्तर प्रदेश की झांकी पुरस्कार भी जीत गई। पूरे देश ने यूपी की सांस्कृतिक विरासत और कुंभ परंपरा की भव्यता को दिल से सराहा। इस घटना ने यह साफ कर दिया कि मुलायम सिंह यादव न तो नौकरशाही के दबाव में झुकते थे और न ही राजनीतिक समीकरणों के आगे प्रदेश की पहचान को कमजोर होने देते थे। आलोचना की परवाह किए बिना उन्होंने वही किया जो उन्हें सही लगा और इतिहास ने उनके फैसले को सही साबित किया।
आज, मुलायम सिंह यादव की जयंती पर यूपी ही नहीं बल्कि पूरा देश उस अनोखे किस्से को याद कर रहा है, जब राजपथ पर खड़े होकर एक नेता ने बिना किसी भाषण, बिना किसी मंच सिर्फ एक निर्णायक आदेश से प्रदेश की लाज बचा ली थी।

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