प्रयागराज। देश के दूसरे हिस्सों की तरह संगम नगरी प्रयागराज में भी इन दिनों चुनावी सरगर्मी शबाब पर है। हालांकि प्रयागराज में पैंतीस सालों के बाद यह पहला ऐसा चुनाव है, जिसमें माफिया अतीक अहमद और उसके परिवार का कोई दखल नहीं होगा। माफिया और उसका परिवार इस बार के चुनाव में न तो साम्प्रदायिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण करा पाएगा और न ही धनबल और बाहुबल के आधार पर चुनाव को किसी दूसरी तरह से प्रभावित कर सकेगा। इतना ही नहीं माफिया अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या भी इस चुनाव में कोई फैक्टर बनती नहीं नज़र आई है। तमाम ऐसे लोग हैं जो इस बार माफिया के वोटिंग प्रेशर से मुक्त होकर अपनी मर्ज़ी से वोट डाल सकेंगे।
गौरतलब है कि किसी वक़्त पुलिस की गिरफ्तारी और इनकाउंटर से भागने वाले माफिया अतीक अहमद ने 1989 के यूपी विधानसभा चुनाव के ज़रिये सक्रिय राजनीति में कदम रखा. चुनाव के दौरान ही अपने विरोधी उम्मीदवार चांद बाबा की हत्या कराने वाला अतीक पहली ही कोशिश में विधायक चुने जाने के बाद लगातार सियासत की सीढ़ियां चढ़ता चला गया था। वह इलाहाबाद की पश्चिमी सीट से लगातार पांच बार विधायक चुना गया। इसके अलावा साल 2004 में कभी पंडित नेहरू का चुनाव क्षेत्र रही प्रयागराज की फूलपुर सीट से सांसद निर्वाचित हुआ था। चुनाव में वह साम्प्रदायिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण कराता था। तो साथ ही धनबल और बाहुबल का जमकर इस्तेमाल करता था।
अतीक के बारे में कहा जाता है कि वह विपक्षी उम्मीदवारों और उनके समर्थकों को तो धमकाता ही था, साथ ही विरोधी खेमे के वोटरों की बस्तियों में आतंक फैलाकर उन्हें वोट डालने से भी रोकता था। गरीब वोटरों में वह पैसे बांटकर उन्हें अपने पाले में कर लेता था। ऐसा नहीं कि वह सिर्फ अपने चुनाव में ही सक्रिय रहता था, बल्कि जिन भी पार्टियों में रहता था, उनके लिए भी इसी अंदाज़ में चुनाव को प्रभावित करता था।
अतीक अहमद चुनावी खुन्नस में हत्याएं कराने से लेकर जानलेवा हमला कराने, अपहरण कराने, रसूख के दम फर्जी मुक़दमे कराने और उत्पीड़न कराने से लेकर आर्थिक तौर पर मजबूत उम्मीदवारों से रंगदारी वसूलने में वह माहिर था। उसके चुनावी पैंतरे के सामने कई बार चुनाव आयोग और सिस्टम भी बौना नज़र आया था। बीएसपी विधायक राजू पाल की हत्या भी उसने सियासी अदावत में ही कराई थी।
माफिया अतीक अहमद कई बार समाजवादी पार्टी और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल में रहा। आख़िरी बार जेल जाने के बाद उसने अपने परिवार को असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी में शामिल करा दिया। पिछले साल हुए नगर निकाय चुनाव में अतीक ने अपनी पत्नी शाइस्ता परवीन को बीएसपी के टिकट पर मेयर का उम्मीदवार बनवाया था।
हालांकि उमेश पाल शूटआउट केस में नामजद होने के बाद शाइस्ता का टिकट काटना पड़ा था। चुनावों में वह काली कमाई पानी की तरह बहाता था। हालांकि वह उन्ही चुनावों में हर हथकंडे अपनाता था, जिनमे वह खुद या उसका परिवार उम्मीदवार होता था। कहा जाता है कि पिछले पैंतीस सालों में प्रयागराज और आसपास के जिलों का कोई ऐसा चुनाव नहीं था, जिसमे माफिया और उसके परिवार का कोई दखल नहीं था।
अतीक ने धीरे धीरे अपने परिवार को भी सफेदपोश बनाना शुरू कर दिया था. उसने अपने छोटे भाई खालिद अज़ीम उर्फ़ अशरफ को भी साल 2006 में विधायक बनाया था। कई चुनाव में उसकी पत्नी शाइस्ता बाकायदा चुनावी मंच सजाकर भाषण देती नज़र आई थी। 2018 के फूलपुर उपचुनाव में अतीक जेल में था तो उसके प्रचार की कमान बड़े बेटे उमर अहमद ने संभाली थी। हालांकि इस चुनाव में उसकी जमानत जब्त हो गई थी। 2019 का लोकसभा चुनाव वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ा था।
अतीक अहमद और उसका भाई अशरफ पिछले साल पंद्रह अप्रैल को मौत के घाट उतारा जा चुका है । उसका तीसरे नंबर का बेटा असद उसकी हत्या से दो दिन पहले झांसी में हुए पुलिस इनकाउंटर में मारा गया था। उसके दो बड़े बेटे जेल में हैं। दोनों छोटे बेटे कई महीने तक बाल सुधार गृह में रहने के बाद अब अपनी बुआ के घर पल रहे हैं। पत्नी शाइस्ता परवीन, छोटे भाई अशरफ की पत्नी ज़ैनब और बहन आयशा नूरी गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार है। कहा जा सकता है कि पैंतीस साल तक जिस अतीक ने चुनावों और सियासत को खूब प्रभावित किया, आज चुनाव में उसका कोई भी नामलेवा नहीं है।
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