करहल विधानसभा सीट साल 1956 में परिसीमन के बाद सियासी वजूद में आई थी। यादव बहुल सीट होने के चलते यादव समाज से ज्यादातर विधायक चुने जाते रहे हैं। सपा के गठन और उससे पहले ही मुलायम सिंह के करीबी नेता ही करहल सीट से जीतते रहे हैं। 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के पहलवान नत्थू सिंह यादव पहले विधायक बने थे। उसके बाद 1962, 1967 और 1969 में स्वतंत्र पार्टी, 1974 में भारतीय क्रांति दल और 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर नत्थू सिंह जीते, लेकिन 1980 में कांग्रेस के शिवमंगल सिंह ने जीत दर्ज की थी। सियासी समीकरण के चलते 1985 से 1996 तक बाबूराम यादव का वर्चस्व कायम रहा था। बाबूराम यादव ने तीन चुनाव जनता दल के टिकट से जीते थे, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने सपा का गठन किया तो बाबूराम भी उनके साथ हो गए। 1993 और 1996 में सपा उम्मीदवार के तौर पर बाबूराम ने करहल सीट से जीत दर्ज की थी। इसके बाद सपा महज 2002 में विधानसभा चुनाव हारी थी और उसके बाद से लेकर अभी तक सपा का दबदबा करहल सीट पर कायम है। साल 2002 के विधानसभा चुनाव की है। सपा के टिकट पर अनिल यादव चुनाव लड़ रहे थे तो बीजेपी ने सोबरन सिंह यादव को टिकट देकर करहल की चुनावी लड़ाई यादव बनाम यादव की बना दी। सोबरन सिंह यादव सपा छोड़कर बीजेपी में आए थे, वह करहल सीट पर सपा की कमजोरी और ताकत दोनों से ही वाकिफ थे। मुलायम सिंह यादव से लेकर शिवपाल यादव तक ने अनिल यादव को जिताने के लिए करहल में दिन रात एक कर दिया था, लेकिन यादव वोटों का बड़ा झुकाव बीजेपी के सोबरन यादव के साथ रहा। करहल में कांटे की फाइट में बीजेपी के सोबरन यादव को 50031 वोट मिले तो सपा उम्मीदवार अनिल यादव को 49106 मत मिले थे। इस तरह से बीजेपी कड़े संघर्ष के बाद महज 925 वोटों से करहल सीट पर कमल खिलाने में कामयाब रही थी।
करहल सीट पर हो रहे उपचुनाव में सपा ने पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को उतारा है, जो मुलायम सिंह यादव के पोते और लालू प्रसाद यादव के दामाद हैं। ऐसे में बीजेपी ने मुलायम सिंह यादव के दामाद और सपा सांसद धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई अनुजेश प्रताप यादव को उतारा है तो बसपा की ओर से अवनीश शाक्य प्रत्याशी हैं। इस तरह करहल सीट पर चुनावी मुकाबला सैफई परिवार यानि मुलायम परिवार के बीच है। बीजेपी ने जिस तर्ज पर 2002 में सपा के यादव प्रत्याशी के सामन अपना यादव प्रत्याशी उतारकर मात दी थी, उसी तर्ज पर सपा के तेज प्रताप यादव के सामने बीजेपी के अनुजेश यादव पर दांव खेला है।
करहल सीट पर करीब सवा तीन लाख वोटर हैं, जिसमें सवा लाख के करीब यादव मतदाता हैं। इसके बाद दलित समाज 40 हजार और शाक्य समुदाय के 38 हजार वोट हैं। पाल और ठाकुर समुदाय के 30-30 हजार वोटर हैं तो मुस्लिम वोटर 20 हजार हैं। ब्राह्मण-लोध-वैश्य समाज के वोटर 15-15 हजार के करीब हैं। करहल में यादव के बाद दलित और शाक्य मतदाता हैं तो वहीं बघेल और ठाकुर वोटर अहम है। शाक्य और क्षत्रिय मतदाता करहल सीट पर बीजेपी का कोर वोटर माना जाता रहा है।बीजेपी ने साल 2022 में एसपी बघेल को उतारकर बघेल मतदाताओं पर अपनी पकड़ बनाने का दांव चला था। सपा प्रमुख अखिलेश यादव को 148197 वोट मिले थे जबकि बीजेपी प्रत्याशी बघेल को 80692 वोट मिले थे। अखिलेश ने बघेल को 67 हजार 504 मतों से हराया था। बसपा के उम्मीदवार कुलदीप नारायण को 15 हजार 701 मत मिले थे।
उपचुनाव में अखिलेश के गढ़ भेदने के लिए बीजेपी ने यादव उम्मीदवार ही नहीं उतारा बल्कि मुलायम परिवार के दामाद पर दांव खेल दिया। इस तरह करहल सीट पर सपा बनाम बीजेपी की लड़ाई काफी रोचक हो गई है। सपा करहल में यादव, शाक्य और मुस्लिम वोटों के समीकरण के सहारे जीत का वर्चस्व बनाए रखना चाहती है। बसपा प्रमुख ने जिस तरह शाक्य समुदाय से प्रत्याशी उतारा है, उसके जरिए दलित-शाक्य समीकरण के सहारे जीत दर्ज करने की मंशा है। बीजेपी की कोशिश अपने सवर्ण ठाकुर-ब्राह्मण समाज के वोटबैंक को साधे रखते हुए लोधी, बघेल के साथ यादव मतदाताओं के विश्वास जीतने की है। ऐसे में देखना है कि सपा तेज प्रताप के जरिए अपनी जीत बरकरार रख पाती है या फिर बीजेपी 2002 की तरह कमल खिलाने में कामयाब होगी?
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