होलाष्टक शुरूः 8 मार्च तक मांगलिक कार्यों पर विराम, जानिए इन 9 दिनों में क्या करें क्या नहीं


वाराणसी। फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा से आठ दिन पूर्व होलाष्टक की शुरुआत हो गई। होलाष्टक के साथ मांगलिक कार्यों पर भी विराम लग गया है। होलिका दहन के साथ होलाष्टक का समापन सात मार्च को होगा। मान्यता है कि होलाष्टक के आठ दिनों तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जा सकते हैं। ज्योतिषाचार्य विमल जैन ने बताया कि होलाष्टक की शुरुआत सोमवार से हो गई है। इस बार होलाष्टक नौ दिनों का होगा। अष्टमी तिथि बढ़ने के कारण होलाष्टक नौ दिनों तक रहेगा। होली से पूर्व आठ दिनों का समय होलाष्टक के नाम से जाना जाता है। अष्टमी तिथि के दिन चंद्रमा, नवमी तिथि के दिन सूर्य, दशमी तिथि के दिन शनि, एकादशी के दिन शुक्र, द्वादशी के दिन बृहस्पति, त्रयोदशी तिथि के दिन बुध, चतुर्दशी तिथि के दिन मंगल और पूर्णिमा के दिन राहु उग्र स्वरूप में माने गए हैं। 

ग्रहों के उग्र होने के कारण व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता में कमी आ जाती है। इस कारण व्यक्ति संकल्प-विकल्प में खोया रहता है। कई बार उसके निर्णय ऐसे भी हो जाते हैं जो कि अनुकूल नहीं रहते। इस कारण लाभ के स्थान पर हानि की आशंका बढ़ जाती है। जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा और वृश्चिक राशि के जातक या चंद्रमा छठें या आठवें भाव में है, उन्हें इन दिनों विशेष सावधानी व सतर्कता बरतनी चाहिए। होलाष्टक के दिनों में वैवाहिक मुहूर्त, वधू प्रवेश, द्विरागमन, मुंडन, नामकरण, अन्नप्राशन, देवप्रतिष्ठा, नवगृह निर्माण व प्रवेश, नवप्रतिष्ठारंभ आदि कार्य वर्जित रहते हैं। ज्योतिषाचार्य पं. विमल जैन ने बताया कि छह मार्च को भद्रा शाम 4ः18 मिनट से अर्द्धरात्रि के पश्चात 5ः15 बजे तक रहेगा। 

भद्रा पुच्छ की शुरुआत छह मार्च को मध्यरात्रि में 12ः30 बजे से होगी और स्नान, दान और व्रत का पर्व फाल्गुनी पूर्णिमा सात मार्च को मनाई जाएगी। होलिकापूजन के पूर्व व पश्चात गंगाजल या शुद्ध जल अर्पित करने का विधान है। इस दिन भगवान नृसिंह की भी पूजा-अर्चना का विधान है। होलिका दहन के समय होलिका की परिक्रमा करने का विधान है। होलिका के चारों ओर तीन या सात बार परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत को लपेटना चाहिए। होलिका की भस्म मस्तक पर लगाने से आरोग्य लाभ के साथ सुख-समृद्धि व खुशहाली मिलती है। होलिका की भभूत संपूर्ण शरीर पर लगाकर स्नान करने से आरोग्य सुख मिलता है।

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