...तो अपने ही गांव में बेगाने हो गए कवि हरिवंश राय बच्चन...

राशन का गोदाम बन गया पुस्तकालय, 2006 में जया बच्चन ने किया था लोकार्पण


प्रतापगढ़। मधुशाला जैसी अमर कृति से अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले प्रख्यात साहित्यकार और कवि हरिवंश राय बच्चन अपने ही गांव में बेगाने हो गए हैं. पैतृक गांव बाबूपट्टी में उनसे जुड़ी स्मृतियां बिखरी पड़ी हैं, मगर सहेजी नहीं जा सकीं. थोड़े बहुत प्रयास जरूर हुए, जो परवान नहीं चढ़े. इस कड़ी में उनकी स्मृति में बने पुस्तकालय का हाल देखा जा सकता है. उसे अब राशन का गोदाम बना लिया गया है. पुस्तकालय में किताबें खोजने पर भी नहीं दिखाई दीं. वहां एक आलमारी व बाबूजी की धूल के गुबार से सनी तस्वीर जरूर दिखी. दो कमरे और एक बड़े हॉल वाले पुस्तकालय में किताबें रखने के लिए रैक तो हैं, लेकिन सभी खाली पड़ी हैं. भले ही उनकी 115वीं जयंती पर गोष्ठियां होंगी, श्रद्धांजलि दी जाएगी, मगर उनके अपने ही गांव के पुस्तकालय में उनकी तस्वीर पर जमा धूल साफ करने वाला शायद ही कोई होगा.

परिवार के लोगों के अनुसार बच्चन प्रयागराज में रहते हुए खुद दो बार ही पैतृक गांव आए थे. उनकी आत्मकथा क्या भूलूं क्या याद करूं, में पुरखों की माटी के प्रति लगाव और प्रेम साफ झलकता है. अपनी किताब में पहले विश्वनाथगंज और फिर दांदूपुर स्टेशन पर ट्रेन से उतरकर पैदल गांव पहुंचने के बाद जिस नीम के चौरा और कुएं का जिक्र उन्होंने किया है, वह आज भी हैं. बाबूजी से मिली यादों को ताजा करने और पुरखों की माटी से नाता जोड़ने के लिए बहू जया बच्चन पांच मार्च 2006 को बाबूपट्टी जरूर आईं, लेकिन उनका कार्यक्रम पूरी तरह से सियासी बनकर रह गया था.


बहू जया बच्चन ने डॉ. हरिवंश राय बच्चन की याद में बने पुस्तकालय का पांच मार्च 2006 को लोकार्पण किया था. नीम के चौरा पर शीश नवाते हुए गांव में कॉलेज बनवाने का वादा भी किया था, मगर वह अब तक पूरा नहीं हो सका. ध्यान देने वाली बात यह है कि समय बीतने के साथ पुस्तकालय का अस्तित्व मिटता जा रहा है. उनकी स्मृतियां सहेजना तो दूर गांव के लोग उनकी शख्सियत भूलते जा रहे हैं. तभी तो पुस्तकालय के भवन में कोटेदार ने राशन का भंडार बना दिया है. बरसात के दौरान उसी भवन में लोग छोटे मोटे आयोजन भी कर लेते हैं. गांव के केदारनाथ यादव का कहना है कि उनके बाबा बताते थे कि पहले गांव के लोग कुएं पर बैठकर अंताक्षरी में बच्चन जी की मधुशाला गाते थे। अब तो बच्चन जी का परिवार ही गांव व अपने परिवार के लोगों को भूलता जा रहा है।


बाबूपट्टी के रहने वाले विजय श्रीवास्तव का कहना है कि पुस्तकालय का लोकार्पण करने आईं जया बच्चन लोगों से वादे तो करके गईं थी कि वह यहां बहू ऐश्वर्या राय को लेकर आएंगी. गांव व समाज के लिए कुछ जरूर करेंगी. पुस्तकालय भवन में राशन रखकर वितरित करने वाले कोटेदार रमाकांत का कहना है कि लोकार्पण के दूसरे दिन ही पूर्व सांसद सीएन सिंह के कुछ समर्थक आए और पुस्तकें उठा ले गए थे. भवन खाली पड़ा था, इसलिए राशन का गोदाम बना लिया है. वहीं प्रधान विकास यादव का कहना है कि पुस्तकालय भवन जर्जर हो गया था. जिसकी मरम्मत कराई गई. नियम के विपरीत कोटेदार ने पुस्तकालय भवन को राशन का गोदाम बना रखा है.

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