दिलचस्प है UP की सबसे पुरानी नगर पंचायत का इतिहास, यहां कभी हाथ उठाकर होता था चेयरमैन का चुनाव...


अलीगढ़। इगलास की नगर पंचायत बेसवां अंग्रेजों के जमाने की है. अंग्रेजी शासन के समय से इसे नगर पंचायत का दर्जा मिला है. आजादी के बाद से अब तक यहां के चुनाव का रोचक इतिहास रहा है. पहले हाथ उठाकर चेयरमैन चुना जाता था. अब वोट से निर्णय होने लगा. वर्ष 2017 के निकाय चुनाव को छोड़कर सभी निर्दलीय प्रत्याशी ही चेयरमैन चुनते आए है. अब निकाय चुनाव निकट है. चर्चाएं तेज हो गई हैं. दावेदार गलियों में अलसुबह ही घूम रहे हैं. हार-जीत की संभावनाएं ढ़ूढ़े जा रही हैं. आरक्षण की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हुई है. फिर कई उम्मीदवार अपने पक्ष का दावा कर रहे है.

बेसवां को 1808 में मिला नगर पंचायत का दर्जा

कस्बा बेसवां व किला क्षेत्र को मिलाकर नगर पंचायत बेसवां बनी अंग्रेजी शासन काल में 28 फरवरी 1808 में बेसवां को नगर पंचायत का दर्ज मिला था. माना जाता है कि यह उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी नगर पंचायत है. त्रेता युग में ऋषि विश्वामित्र ने यहां जन कल्याण के लिए यज्ञ किया था और यह नगरी ब्रज 84 कोस की परिक्रमा में आने के कारण भी विख्यात है. बेसवां को विश्वामित्रपुरी के नाम से भी जाना जाता है. यहां सबसे पहले अंग्रेज ह्यूम प्रशासक बना.

इनके बाद स्वतंत्रता से पहले महादेव प्रसाद कपूर तीन बार चेयरमैन रहे. पिछले कुछ चुनावों पर नजर डालें तो सुरक्षित सीट पर 1995 में रमेश चंद्र दिवाकर चेयरमैन बने, इन्होंने मुरारीलाल सूर्यवंशी को हराया था. 2000 में सामान्य महिला सीट पर निर्मला कपूर व पुष्पा देवी के मध्य मुकाबला रहा. निर्मला कपूर ने जीत दर्ज कराई. 2006 में ओबीसी महिला में सीट आने पर रानी महेंद्र कुमारी ने जीत दर्ज की. इन्होंने मछला देवी को मात दी थी.

2012 में सामान्य सीट पर संजय अग्रवाल ने सत्यप्रकाश उपाध्याय को मात देकर जीत का ताज पहना. 2017 ओबीसी सीट पर महेंद्र कुमारी के पुत्र कुंवर राज सिंह व मनोज कुमार कुशवाह के बीच कड़ी टक्कर रही. मनोज कुमार ने जीत दर्ज की.वर्ष 2000 में पुष्पा देवी बीएसपी और 2006 में श्यामो देवी ने बीएसपी से चुनाव लड़ा. दोनों चुनावों में निर्दली प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. 2017 में मनोज कुमार कुशवाह को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया और इन्होंने जीत दर्ज की.

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