मुख्यमंत्री बनने का पत्र लेकर रिक्शे से पहुंचे थे राजभवन
आजमगढ़। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री व मध्यप्रदेश पूर्व राज्यपाल रामनरेश यादव आजमगढ़ को देश व प्रदेश में विशेष पहचान दिलाने के लिए जीवनभर संघर्षरत रहे। 22 नवंबर के दिन को लोग कभी भूल नहीं पाते हैं। दरअसल, इसी दिन फूलपुर क्षेत्र के आंधीपुर गांव निवासी रामनरेश यादव ने पीजीआई ने अंतिम सांस ली थी। इसके पूर्व उन्होंने छठवीं लोकसभा में सांसद रूप में आजमगढ़ की आवाज को बुलंद किया। वर्ष 1977 से 1979 तक यूपी के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। वह इसके बाद मध्यप्रदेश के राज्यपाल, राज्यसभा सदस्य और निधैलीकला के साथ ही शिकोहाबाद फूलपुर से विधायक भी बने। उनकी पुण्यतिथि स्वजन के अलावा इलाके में कई जगहों पर मनाए जाने की तैयारी चल रही है।
बीएचयू से ली एलएलबी की शिक्षा
पूर्व राज्यपाल स्व. रामनरेश यादव का जन्म एक जुलाई 1928 को फूलपुर तहसील क्षेत्र के आंधीपुर गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता मुंशी गया प्रसाद यादव प्राथमिक पाठशाला अंबारी में शिक्षक थे। इनकी प्राथमिक शिक्षा प्राइमरी पाठशाला अंबारी, दसवीं बेस्ली इंटर कालेज और 12 वीं वाराणसी के डीएबी कालेज से हुई। उन्होंने बीए, एमए व एलएलबी की शिक्षा बीएचयू से प्राप्त किए। उसके बाद वाराणसी के एक कालेज में तीन साल तक प्रवक्ता के पद रहे। आजमगढ़ में वकालत करने दौरान जनता पार्टी से भी जुड़े रहे और 1977 में आजमगढ़ के सांसद बने। 23 जून 1977 को यूपी के मुख्यमंत्री बने तो लोकसभा से इस्तीफा दे एटा जिले की निधौलीकला सीट से विधायक चुने गए। उनका कार्यकाल काफी उपलब्धियों वाला भी माना जाता है।
ईमानदारी और सादगी की बने मिसाल
दरअसल, जब 1977 में इमर्जेसी के बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई तो केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बन गई। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री राजनारायण दिल्ली में अपने कार्यालय पर किसी उधेड़-बुन में लगे रहे। तभी आजमगढ़ के सांसद रामनरेश किसी समस्या को लेकर उनके पास पहुंचे। उन्होंने जैसे ही सांसद को देखा उनका चेहरा खिल उठा। उन्होंने तत्काल सांसद को लेकर जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर के आवास पर पहुंचे। दरवाजे से ही चिल्लाते हुए कहा कि अध्यक्ष जी आप की समस्या का समाधान लेकर आया हूं। फिर दोनों लोग रामनरेश को वहीं छोड़कर प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से मिलने चले गए।
मुख्यमंत्री बनने का पत्र लेकर रिक्शे से पहुंचे थे राजभवन
रात करीब 9 बजे रामनरेश को पता चला कि वह यूपी के अगले सीएम बनने वाले है। उस समय कोई फ्लाइट उपलब्ध नहीं थी। वीवीआईपी कोट से रेल का टिकट कराकर उन्हें एक लिफाफा दिया गया और कहा गया कि कल सुबह आप राजभवन जाकर यह लिफाफा यूपी के राज्यपाल को दे दें। लखनउ मेल से सुबह चारबाग पहुंचे और रिक्शे से राजभवन की ओर बढ़ गए। तभी एक एंबेसेडर गाड़ी ने रोक लिया। गाड़ी पर आकाशवाणी का बोर्ड लगा था। कल से होने वाली घटनाओं ने रामनरेश को हैरान कर दिया। गाड़ी से निकले अधिकारी ने धीरे से कहा बधाई हो मुख्यमंत्री जी। उन्होंने उसका कंधा पकड़कर कान में कहा कि आपको कैसे पता। तब उन्होंने कहा कि मैं आकाशवाणी का निदेशक हूं मुझे दिल्ली सूत्रों से पता चला है। आइए कार में बैठिए, राजभवन चलते है। लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया और रिक्शे से ही राजभवन पहुंचे।
लखनउ के पीजीआई ली अंतिम सांस
उन्होंने अपने कार्य काल के दौरान किसानों को भूमिधर बनाने, काम के बदले अनाज योजना, साढ़े तीन एकड़ जमीन की लगान माफ, अनुसूचित जाति के लोगों को बगैर जमानत 5000 ऋण सुविधा, खाद पर 50 फीसद की सब्सिडी, पिछड़े वर्ग के छात्रों को हाईस्कूल से एमए तक की शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति सहित तमाम योजनाओं का संचालन किया। 26 अगस्त 2011 को मध्य प्रदेश के राज्यपाल बने। 22 नवंबर 2016 को 89 वर्ष की उम्र में इलाज के दौरान लखनउ के पीजीआई अंतिम सांस ली।
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