राजेन्द्र त्रिपाठी
गोरखपुर। जिले के चौरी-चौरा में आज से ठीक सौ साल पहले यानी की 4 फरवरी 1922 एक ऐसी घटना घटी जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हीला कर रख दी। जी हां आज चौरी-चौरा कांड की 100वीं बरसी है। इतिहास के पन्नों में इस दिन का बड़ा ही महत्व है। इस कांड में 23 पुलिसकर्मी मारे गए थे। लाल मोहम्मद, विक्रम अहीर, नहीर अली ने इस घटना को अंजाम दिया था। चौरी-चौरा वास्तव में दो अलग-अलग गांव चौरी और चौरा से मिलकर बना है। ब्रिटिश भारतीय रेलवे के एक टैफिक मैनेजर ने इन गांवों का नामकरण एक साथ किया था। जनवरी 1885 में यहां एक रेलवे स्टेशन की स्थापना हुई थी। शुरू में सिर्फ रेलवे प्लेटफार्म ओर मालगोदाम का नाम ही चौरी-चौरा था लेकिन बढ़ते बाजार ने दोनों गांवो को हमेशा के लिए एक कर दिया।
ब्रिटिश हुकूमत ने जुलूस रोकने को चलाई गोलियां
महात्मा गांधी की अगुवाई में 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन की शुरूआत हुई। इसी क्रम में स्वयंसेवकों ने 4 फरवरी को चौरी-चौरा गांव में एक बैठक की और पास के बाजार में जुलूस निकालने का फैसला किया। पुलिस ने उनके जूलूस को रोकने का प्रयास किया और गोलियां बरसाने लगे। जिसकी वजह से भीड़ और ज्यादा उग्र हो गई। इस घटना में कुछ निहत्थे लोगों की मौत हो गई। जबकि कुछ लोग घायल हो गए। वहीं पुलिस के इस बर्ताव से लोगों का गुस्सा बढ़ गया और उन्होंने चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन को जला दिया। इस घटना में 23 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। इस हिंसक कृत्य से आहत हुए महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को बारदोली में कांग्रेस की बैठक में असहयोग आंदोल को वापस ले लिया। क्रांतिकारियों के इस आक्रोश से ब्रिटिश सरकार की नींद हिल गई थी।
दोषियों में 19 को मिली फांसी
ब्रिटिश सरकार ने आरोपियों पर मुकदमा चलाया। सत्र न्यायालय ने 225 आरोपियों में से 172 लोगों को मौत की सजा सुनाई। हालांकि बाद में इसमें से दोषी ठहराए गए लोगों में से 19 को फांसी दी गई थी। चौरी-चौरा कांड से पूरे देश में उठे तूफान ने कई युवा राष्टवादियों को ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि भारत अंहिसा के जरिए कभी अंग्रेजों से आजादी हासिल नहीं कर पाएगा। इस क्रांतिकारियों में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, जतिन दास, भगत सिह, मास्टर सूर्य सेन, भगवती चरण वोहरा जैसे कई लोग शामिल थे। जिन्होंने भारत की आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।
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