केस में सजा पांच साल, मुकदमा चला 32 साल... अब RSS के लोगों को मिली मुक्ति!


कानपुर। हमारे देश में जब भी न्याय की बात होती है तो कहा जाता है कि न्याय में देरी अन्याय के समान है। ऐसा ही एक उदाहरण कानपुर के कोर्ट में देखने को मिला है। यहां एक मुकदमा जिसकी धाराओं में 5 साल की सजा है, वो पिछले करीब 32 साल से लंबित चल रहा था। इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए सरकार ने मुकदमा वापस लेने के लिए कोर्ट में एक अर्जी दी थी, जिसमें उसने जनहित में मुकदमा वापस लेने की बात कही थी। कोर्ट ने भी अब इस पर अपनी मोहर लगा दी है। 6 दिसंबर, 1992 को सुनील बाजपेई समेत 5 लोगों के खिलाफ फजलगंज थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया था। मुकदमे में कहा गया था कि यह सभी लोग आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद से जुड़े हुए हैं और यह लोग अयोध्या के ढांचे को गिराने की बात कर धार्मिक उन्माद फैला रहे थे। मुकदमे में चार्जशीट दाखिल होने के बाद सुनवाई शुरू हो गई। इस मामले में सुनील बाजपेई की गिरफ्तारी भी हुई थी। जबकि उमाशंकर गुप्ता, ब्रजेश गुप्ता, अरुण गुप्ता और नरेंद्र पोरवाल को जमानत मिल गई थी। आईपीसी की धारा 153 ए के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था, जिसमें अधिकतम सजा 5 साल है। अगस्त 2021 में अदालत में एप्लिकेशन देकर बताया गया कि सरकार ने यह मुकदमा जनहित में वापस लेने का फैसला किया है। सरकार के पास यह अधिकार होता है कि वो सजा सुनाई जाने से पहले किसी भी मुकदमे को जनहित में वापस लेने का आग्रह अभियोजन के माध्यम से कर सकता है। यह मुकदमा पुराने मुकदमे की श्रेणी में आता था और अदालत की अनुमति के बाद मुकदमा वापस लेने का प्रावधान है। इसी के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट सुमित कुमार की अदालत ने सभी आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया। आरोपियों का कहना है कि 32 साल तक उन्हें काफी मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी। किसी भी काम के लिए सत्यापन होता था तो पुलिस रिपोर्ट में उनके खिलाफ एक मुकदमा दर्ज होने की बात आती थी। इस फैसले के बाद से ही पांच लोगों के परिवार में खुशी की लहर है।

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