लखनऊ। मुख्तार अंसारी एक प्रतिष्ठित परिवार की पृष्ठभूमि से था, मगर बाद में उन्होंने इसके विपरीत अपनी छवि बना ली। जेल में बंद गैंगस्टर से नेता बने 63 वर्षीय मुख्तार अंसारी की गुरुवार की शाम दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। बीते करीब 40 सालों तक अपने वर्चस्व की छाप छोड़ने वाल मुख्तार अंसारी के सियासी सफर की शुरूआत हार से हुई थी। दरअसल, 1995 में मुख्तार अंसारी एक मामले में दिल्ली की जेल में बंद था। तब मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की सरकार उत्तर प्रदेश में गिर गई थी। सरकार गिरने के बाद राज्य में चुनाव हुए और मुख्तार अंसारी को भाकपा (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी) ने टिकट दिया था। लेकिन माफिया मुख्तार अपने जीवन के पहले ही चुनाव में हार गया था, यानी उसके सियासी सफर की शुरूआत हार से हुई थी।
इस हार के बाद ही मुख्तार अंसारी मऊ से अगली बार चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 1996 से मऊ से लगातार पांच बार विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे। कुछ लोगों ने अंसारी में रॉबिन हुड की छवि देखी, तो अन्य ने उन्हें आपराधिक गतिविधियों में लगे रहने वाले के रूप में देखा। अपने राजनीतिक कार्यकाल के दौरान वह बहुजन समाज पार्टी के साथ जुड़ा रहा। उसे 'गरीबों के मसीहा' के रूप में चित्रित किया गया था और बाद में बसपा छोड़कर उसने अपने भाइयों के साथ कौमी एकता दल का गठन की थी। अंसारी का जीवन कानूनी परेशानियों से भरा रहा। साल 2005 में जेल में बंद होने के बाद से उसे 60 से ज्यादा मामलों में आरोपों का सामना करना पड़ा है। उसके आपराधिक रिकॉर्ड में हत्या, अपहरण और जबरन वसूली के आरोप शामिल थे। अप्रैल 2023 में उसे भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया और 10 साल कैद की सजा सुनाई गई थी। मार्च 2024 में उसे फर्जी हथियार लाइसेंस रखने के मामले में उम्रकैद की सजा मिली थी।
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