बसपा सुप्रीमो मायावती ने अभी तक किसी भी बड़े गठबंधन के साथ जाने से इनकार किया है। ऐसे में सियासी गलियारों में बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि क्या मायावती छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन कर कोई बड़ा खेल करने वाली हैं। सूत्रों के मुताबिक मायावती हरियाणा में इनेलो के साथ गठबंधन करने जा रही हैं। बहुजन समाज पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इस बार यह गठबंधन मजबूती के साथ लोकसभा चुनाव में उतरेगा। दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मायावती ने इनेलो से गठबंधन किया था, लेकिन आपसी तकरार के चलते चुनाव से पहले ही ये गठबंधन टूट गया। दोनों दलों के नेताओं ने इस बार गठबंधन की नींव को मजबूती के साथ आगे बढ़ाने की योजना बनाई है। सूत्रों की माने तो बहुजन समाज पार्टी ने हरियाणा में 6 सीटों और इनेलो को चार सीटों पर लड़ने का ऑफर तैयार किया है।
इसी तरह पंजाब में भी मायावती की बहुजन समाज पार्टी और अकाली दल का गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए तय माना जा रहा है। आधिकारिक तौर पर लोकसभा चुनाव के लिए बसपा और अकाली दल की ओर से कोई बयान नहीं आया है। सूत्रों की मानें तो बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के साथ सुखबीर बादल की दिल्ली में जनवरी के आखिरी सप्ताह में मुलाकात हो चुकी है। माना जा रहा है कि दोनों सियासी दल लोकसभा चुनाव में एक साथ आ सकते हैं। सूत्रों की माने तो बसपा और अकाली दल की नजदीकी इस वजह से और मजबूत हो रही है क्योंकि बसपा विपक्षी राजनैतिक दलों के गठबंधन समूह INDIA में शामिल नहीं हो रही है।
बहुजन समाज पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक मायावती सिर्फ हरियाणा पंजाब में ही इन दलों के साथ गठबंधन में नहीं जाने वाली बल्कि कुछ अन्य दलों के साथ भी उनका समझौता होगा। इसमें मध्य प्रदेश में जीजीपी और छत्तीसगढ़ समेत झारखंड के कुछ राजनैतिक दल भी शामिल है। दरअसल छोटे दलों के साथ समझौते को लेकर मायावती की अपनी एक अलग रणनीति मानी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषक चंद्रभान विसेन कहते हैं मायावती भारतीय जनता पार्टी के एनडीए से गठबंधन तो नहीं करना चाहती है, लेकिन जरूरत पड़ने पर वह सरकार में शामिल हो सकती हैं। कहते हैं कि मायावती ने ऐसा सार्वजनिक मंचों पर और अपने वक्तव्य में कहा भी है। यही वजह है कि बसपा सुप्रीमो छोटे-छोटे दलों के साथ अपनी एक अहम भागीदारी सुनिश्चित करना चाहती हैं। अगर सभी दल मिलकर कुछ मजबूत नंबरों के साथ चुनाव जीतते हैं तो जरूरत पड़ने पर बसपा के इन दलों का एलायंस महत्वपूर्ण हो सकता है। इसीलिए इन दलों के साथ मिलकर मायावती NDA और INDIA का खेल बिगाड़ने में लगी हैं।
सियासी जानकारों की माने तो मायावती अभी तक उत्तर प्रदेश में किसी भी दल के साथ गठबंधन में नहीं जा रही हैं। इसलिए यहां के सियासी समीकरण भी बदले हुए हैं। राजनीतिक जानकार ओपी मिश्रा बताते हैं कि 2019 के चुनावों में मायावती ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर जो बढ़त हासिल की उसी को आधार मानकर पार्टी आगे की रणनीति बना चुकी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में मायावती का सूपड़ा साफ हो गया था। लेकिन उसके अगले चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर बहुजन समाज पार्टी शून्य से 10 सीटों पर पहुंच गई। हालांकि बाद में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन टूट गया और 2022 के विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी का एक बार फिर से सबसे लचर प्रदर्शन साबित हुआ। बहुजन समाज पार्टी का वोट प्रतिशत लोकसभा चुनाव में कम नहीं हुआ है। यही वजह है कि मायावती ने किसी भी दल से समझौता न करके खुद अकेले सियासी मैदान में उतरी है।
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