कन्नौज। कन्नौज के छिबरामऊ में पुलिस पर हमले का आरोपी और हिस्ट्रीशीटर अशोक यादव उर्फ मुनुआ यादव अब पुलिस और प्रशासन के निशाने पर है। उसकी आपराधिक गतिविधियों का रिकॉर्ड पुलिस के पास पहले से है। अब उसके आर्थिक साम्राज्य को भी एकत्र किया जा रहा है। मंगलवार को राजस्व महकमे की टीम ने चार घंटे तक उसके मकान और खेतों की पैमाइश की। पुलिस पर हमला कर सुर्खियों में आया अशोक यादव उर्फ मुनुआ की आर्थिक कुंडली खंगालने के लिए मंगलवार को सुबह 10 बजे ही राजस्व महकमे की टीम उसके गांव पहुंच गई। छिबरामऊ तहसील के नायब तहसीलदार भरत कुमार मौर्या के नेतृत्व में राजस्व निरीक्षक रामेंद्र सिंह, लेखपाल राजदीप सक्सेना, गजेंद्र सिंह, मनीष तिवारी, प्रीतम सिंह यादव व राजेश यादव धरनीधरपुर नगरिया गांव पहुंचे। टीम ने चार घंटे तक चारों तरफ से हिस्ट्रीशीटर के घर की पैमाईश की। दोपहर को एसडीएम उमाकांत तिवारी भी मौके पर पहुंचे और पैमाईश की जानकारी ली।
पुलिस व हिस्ट्रीशीटर और उसके परिवार के बीच हुई मुठभेड़ से घर के ऊपर लगीं हाईमास्क लाइटें और सीसीटीवी कैमरे टूट गए। कैमरों की वायरिंग खेत व चकरोड में पड़ी हुई थी। हालांकि यह कैमरे और लाइटें किसने तोड़ी, यह ग्रामीणों में चर्चा का विषय रही। पिता के नक्शेदम पर चलने वाला नाबालिग अभयराज ने पुलिस टीम से मोर्चा ले लिया। मां के साथ मिलकर उसने भी फायरिंग की। जब पुलिस ने उसे सरेंडर करने को कहा, तो वह यही कहता रहा कि सीओ को बुलाओ, वह उनसे निचले स्तर के किसी भी पुलिस कर्मी से बात नहीं करेगा।
हिस्ट्रीशीटर मुनुआ ने गांव के बाहर आशियाना अपने साढ़े तीन बीघे खेत में बनाया है। घर की छत पर हाईमास्क लाइटें लगाईं गईं थीं और चारों तरफ सीसीटीवी कैमरों से निगरानी की जाती थी। घर से दो तरफ सड़क है जबकि चारों तरफ खिड़की लगाई गई है, जिससे वह हर तरफ आसानी से देख सके। घर के तीन तरफ किसी भी स्थिति में निकलने के लिए गेट भी लगे हैं। गांव में दो भाइयों की हत्या कर सुर्खियों में आया मुनुआ यादव कुछ ही दिनों में ग्रामीणों के लिए आतंक का पर्याय बन गया। मुनुआ का नाम सुनते ही ग्रामीण खौफ से कांपकर दहशत में आ जाते थे। आलम यह था कि शाम ढलने के बाद ग्रामीण उसके घर की तरफ जाने की हिम्मत नहीं जुटाते थे। वर्ष 1998 में पहली हत्या करने वाला मुनुआ महज कुछ ही दिनों में अपराध जगत का बड़ा नाम बन गया। विशुनगढ़ पुलिस में उसकी पहचान हिस्ट्रीशीटर 40 ए है। उसके नाम का खौफ ग्रामीणों में इस कदर है कि उसकी बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। हिस्ट्रीशीटर के दो बेटों अमित व गौरव उसके साथ नहीं रहते। दबी जुबां में ग्रामीणों ने बताया कि बड़ा बेटा अमित पिछले दो सालों से घर पर नहीं आया है। मुुनुआ से अदावत करने की बात ग्रामीण सपने में भी नहीं सोच सकते थे।
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