वाराणसी। अंतरराज्यीय बच्चा अगवा गिरोह से सिंदुरिया पोखरी, शिवदासपुर की रहने वाली शिखा मोदनवाल बीते जनवरी में राजस्थान में अपनी बेटी की शादी के बाद जुड़ी थी। शिखा ने ही अपने बहनोई संतोष गुप्ता को प्रति बच्चा डेढ़ से दो लाख रुपये मिलने का लालच देकर कम समय में ज्यादा पैसा कमाने की तरकीब बताई। इसके बाद अपने पति संजय मोदनवाल, बहनोई संतोष व उसके बेटे शिवम के साथ सड़क किनारे, झुग्गी-झोपड़ियों और मलिन बस्तियों में रहने वाले परिवारों के मासूम बच्चों को निशाना बनाने लगी। पुलिस की पूछताछ में शिखा मोदनवाल ने बताया कि लगभग डेढ़ लाख रुपये लेकर राजस्थान में उसने अपनी बेटी की शादी की थी। उसने जहां अपनी बेटी की शादी की थी, उन लोगों ने बताया कि वह और झारखंड में रहने वाले उनके रिश्तेदार शहरी क्षेत्र में रहने वाले गरीब परिवारों के बच्चों को अगवा कर निःसंतान दंपतियों को बेच देते हैं। बच्चे गरीब परिवारों के रहते हैं, इस वजह से पुलिस भी गंभीरता से ध्यान नहीं देती है। पकड़े जाने का कोई खतरा भी नहीं रहता है। शिखा ने तय किया कि वह भी यह काम करेगी। इसके लिए उसने अपने पति और बहनोई व उसके बेटे के साथ ही शिवदासपुर क्षेत्र के विनय मिश्रा को भी तैयार किया।
बच्चा अगवा कर शहर से बाहर जाने तक उसे रखने के लिए लोहता क्षेत्र में किराये पर ऐसा कमरा लिया गया, जहां मकान मालिक नहीं रहता था। वाराणसी और उसके आसपास से अगवा बच्चों को संजय, संतोष, शिवम और विनय सबसे पहले लोहता क्षेत्र स्थित कमरे पर ले जाते थे। वहां बच्चे को शिखा नहला-धुलाकर नए कपड़े पहनाकर उनको दूध पिलाने और खाना खिलाने का काम करती थी। राजस्थान और झारखंड में रहने वाले गिरोह के सदस्यों से जब बच्चे का सौदा तय हो जाता था तो उसे लोहता क्षेत्र से सीधे वहीं गिरोह का सदस्य लेकर जाता था। बच्चा ले जाने के दौरान वह और गिरोह का कोई पुरुष सदस्य साथ जाते थे, ताकि रास्ते में किसी को शक न हो। बच्चा बेचने के बदले में जो पैसा मिलता था उसे शिखा, संजय, संतोष, शिवम और विनय बराबर-बराबर आपस में बांट लेते थे।
शिखा ने पूछताछ में बताया कि पहली बार बनारस के चौकाघाट क्षेत्र से एक बच्ची को अगवा किया था। उसके परिजनों ने पुलिस के पास शिकायत ही नहीं दर्ज कराई। दूसरा बच्चा नदेसर से अगवा किया। इसके बाद एक बच्चा प्रयागराज के अलोपीबाग से अगवा किया। फिर, एक बच्ची और बच्चे को विंध्याचल रेलवे स्टेशन के समीप से अगवा किया। इसके बाद एक बच्ची नगवां स्थित एक मकान से अगवा किया। आखिरी में 14 मई की रात रामचंद्र शुक्ल चौराहा से चार वर्षीय बच्चे को अगवा किया गया। इनमें से बनारस के चौकाघाट और नदेसर क्षेत्र से अगवा दो बच्चों को अभी बरामद किया जाना है। प्रयागराज से और विंध्याचल से गायब एक-एक बच्चे को भी बरामद किया जाना बाकी है।
पुलिस की पूछताछ में शिखा ने बताया कि जो निःसंतान दंपती बच्चा लेते हैं, उनकी कुछ शर्तें होती हैं। शर्त की प्रमुख बातें यह हैं कि लड़का हो, गोरा व खूबसूरत हो और उम्र अधिकतम चार साल तक हो। इन शर्तों को पूरा करने पर बच्चे की मुंह मांगी कीमत मिलती है। बच्चा सांवला हो या फिर लड़की हो तो उसकी कम कीमत मिलती है। शिखा ने बताया कि संतोष सहित उसके गिरोह के अन्य सदस्यों ने हाल ही में लहरतारा क्षेत्र से एक सांवली बच्ची का अपहरण किया था। उसे बेचने का प्रयास किया गया, लेकिन बात नहीं बनी तो बच्ची को उसकी झोपड़ी के पास पुनः ले जाकर छोड़ दिया गया। वाराणसी और उसके आसपास के जिलों से अगवा बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र हजारीबाग की एक नर्स बनवाती है। इसके लिए वह अपने अस्पताल में लिखापढ़ी में पूरा रिकॉर्ड मेंटेन करती है। फिर उसी रिकॉर्ड के आधार पर बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र और आधार कार्ड बनवा देती है। पुलिस टीमें उस नर्स के पीछे लगी हुई हैं और बताया जा रहा है कि वह जल्द ही पुलिस की गिरफ्त में होगी।
तीन बच्चों को बरामद कर गिरोह के 10 सदस्यों को पकड़ने में सर्विलांस प्रभारी अंजनी कुमार पांडेय और दुर्गाकुंड चौकी प्रभारी आनंद चौरसिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपर पुलिस आयुक्त (मुख्यालय एवं अपराध) संतोष कुमार सिंह ने बताया कि रामचंद्र शुक्ल चौराहा से बच्चा अगवा होने की जानकारी मिलते ही दुर्गाकुंड चौकी प्रभारी ने सीसी कैमरों की मदद से कार की तलाश शुरू कर दी थी। कार को चिह्नित कर उन्होंने सबसे पहले विनय को चिह्नित किया। इसके साथ ही संतोष गुप्ता के बारे में भी जानकारी जुटाई। संतोष गुप्ता पकड़ा गया तो पूछताछ में उससे मिली जानकारी के आधार पर इंस्पेक्टर अंजनी कुमार पांडेय ने सर्विलांस की मदद से काम करना शुरू किया। इंस्पेक्टर अंजनी द्वारा उपलब्ध कराए गए इनपुट के आधार पर दुर्गाकुंड चौकी प्रभारी राजस्थान से लेकर गुजरात तक ताबड़तोड़ दबिश दिए और 10 आरोपी पकड़े गए।
रामचंद्र शुक्ल चौराहे से अगवा चार साल का बच्चा जब मंगलवार को अपने पिता संजय और मां चंदा से मिला तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मां-बाप अपने कलेजे के टुकड़े को सीने से चिपका कर सिर्फ रोये ही जा रहे थे। हालांकि मां-बाप और बेटे के बीच पहचान पत्र बाधक बन गया। मां-बाप के पास पहचान पत्र न होने के कारण बच्चे को फिलहाल लहुराबीर स्थित काशी अनाथालय में रखा गया है। पिता संजय ने बताया कि वह सीवर और नाले की सफाई का काम करता है। कोई स्थायी ठिकाना नहीं है, जहां काम मिलता है वहीं कर लेता है और सड़क किनारे ही पत्नी चंदा व बच्चों के साथ कहीं भी सो जाता है। संजय ने बताया कि उसका आधार कार्ड उसके एक परिचित के पास है। बुधवार को वह अपना परिचय पत्र पुलिस को दे देगा और अपना बच्चा ले लेगा। उधर, मिर्जापुर के विंध्याचल से अपहृत बच्चे को लेने के लिए उसके अभिभावक नहीं आ पाए। उन्होंने पुलिस को कहा कि वह बुधवार को आकर बच्चे को ले जाएंगे। उस बच्चे को भी काशी अनाथालय में रखा गया है।
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