इससे पहले सात अक्तूबर को संजय महतो (35), पांच अक्तूबर को बगड़ी कुमारी (12), 21 सितंबर को रामप्रसाद उरांव (65), 12 सितंबर को प्रेमकुमारी देवी (40), 15 जुलाई को धर्मराज काजी (60), 20 मई को पार्वती देवी (50) और 14 मई को राजकुमार बैठा (12) की मौत बाघ के हमले में हो चुकी है. बाघ के लगातार हमले से आक्रोशित ग्रामीण बाघ को मारने की मांग कर रहे थे. लोगों में वन विभाग व पुलिस के प्रति नाराजगी थी. मई से अब तक नौ लोगों की जान जाने के बाद बाघ को आदमखोर मानते हुए उसे जान से मारने के लिए वीटीआर के सीएफ नेसामनी ने सीएनटीसीए (नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी) से अनुमति मांगी थी. अनुमति मिलते ही बाघ को मार दिया गया.
लगभग सात शूटरों को अत्याधुनिक असलहे के साथ शनिवार को तैनात किया गया था. बाघ की संभावित मौजूदगी वाले क्षेत्रों में विशेष वाहन से निशानेबाज जवान कांबिग कर रहे थे. दोपहर बाद बलुआ गांव के पास बाघ और शूटरों का आमना-सामना हुआ, जिसमें बाघ मारा गया. चार सौ वन कर्मचारी और दक्षिण भारत एवं नेपाल से बुलाए गए विशेषज्ञ इस खतरनाक बाघ को नहीं पकड़ पाए थे. रिहाइशी इलाके से बाघ को जंगल में सुरक्षित क्षेत्र में ले जाने के लिए वीटीआर प्रशासन एवं जिला प्रशासन ने नेपाल के चितवन प्राणि उद्यान सहित दक्षिण भारत से विशेषज्ञ बुलाकर बाघ को बेहोश कर पकड़ने की कोशिश की थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. लगभग चार सौ वनकर्मी तैनात थे. फिर भी बाघ चकमा देकर लोगों की जान ले रहा था.
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