नवरात्र पर यहां राक्षस की पूजा करती कुंवारी लड़कियां...जानें क्या है नौरता का खेल


महोबा। निकरो दुलैयारानी बाहर नर सुअटा, खिरकन बैठे कोतवाल नर सुअटा, कांट कटैया कांटें, पांच भैया पाटे, छटो में न्यारे... आदि गीत गाते हुए कुंवारी कन्याएं नवरात्र पर नौ दिनों तक दीवार पर बने राक्षस के चित्र पर फूल-पाती छिड़क कर पूजा करती हैं. बुंदेलखंड अपनी अनोखी परंपराओं और रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है. इन्हीं त्योहारी खेलों में से एक खेल नौरता है, जिसे कुंवारी कन्याएं खेलती हैं.

नौ दिन होने वाले इस विशेष आयोजन में केवल बालिकाएं ही शामिल होती हैं. बुंदेलखंड नौरता की तैयारी नवरात्र के चार-पांच दिन पहले से होने लगती है. कन्याएं सफेद कलर का (पन्ना पत्थर) एकत्र करके उसे पीसती हैं. इसे पीसने में ही तीन से चार दिन तक लग जाते हैं. इस पीसे हुए पत्थर के चूरे से रंगोली सजाई जाती है. कन्याएं मोहल्ला में एक ग्रुप बना लेती हैं. फिर किसी एक घर पर इसका नौ दिनों तक पूजन होता है. नवरात्र पर प्रतिदिन सुबह होने वाली इस विशेष पूजा को कन्याएं पूरे नौ दिन तक विधि-विधान से बुंदेली गीत गाते हुए पूजा करती हैं. दीवार पर राक्षस के चित्र के दोनों ओर सूर्य और चंद्रमा बनाती हैं.

चबूतरे पर चौक बनाकर उसे गोबर से लीपा जाता है फिर रंगोली बनाई जाती है. दूज, तीज, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी और नवमी तक इन चौकों की संख्या में क्रमश बढ़ोत्तरी होती जाती है. लड़कियां राक्षस की आरती करती हैं और जल चढ़ाती हैं. नवमी पर एक कच्चे घड़े में सैकड़ों छिद्र करके उसके अंदर दीपक जलाकर व एक दीपक ऊपर रख कर, उस घड़े को सिर पर रख कर कन्याओं का ग्रुप गांव में गीत गाते हुए जाता है, हर घर से इनको अनाज और पैसा मिलता है.

90 वर्षीय फूलारानी कहती हैं कि महाभारत काल में एक राक्षस कन्याओं को मार कर खा जाता था, भगवान कृष्ण के कहने पर राक्षस ने उपाय बताया कि यदि बालिकाएं उसकी पूजा करें तो उनका जीवन सुखमय होगा और उनकी हर तरह से रक्षा होगी, दूसरा यह भी कि राक्षस रूपी कुरीतियों को भगाने उन्हें दूर करने को राक्षस की पूजा होती है.

इतिहासकार संतोष पटैरिया कहते हैं कि आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नौ दिनों तक कुंवारी कन्याएं नौरता का खेल करती हैं. इस खेल के साथ महाभारत काल में एक कथा का वृत्तांत जुड़ा है. वनवास काल के दौरान पांडव जिस गांव में रुके थे वहां एक राक्षस से लोग पीड़ित थे, बाद में भीम ने उस राक्षस को मारा था. संभव है यह पूजा विधि तभी से चली आ रही है, कन्याएं स्वयं व परिवार की राक्षस से रक्षा के लिए यह पूजन करती हैं. दूसरा कथानक यह भी है कि कुरीतियां व अनीति रूपी राक्षस से स्वयं की रक्षा को कन्याएं राक्षस की पूजा कर उससे अपनी रक्षा का प्रार्थना करती हैं.

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