16 हजार रुपए में चुनाव लड़े थे अच्छेलाल बागी

कहा संसदीय मर्यादा के बजाय धनबल और बाहुबल का केंद्र बना चुनाव



मऊ। पूर्व के चुनाव में एवं वर्तमान के चुनाव में जमीन आसमान का अंतर हो गया है। पहले चुनाव सादगी एवं आपसी भाईचारे के साथ लड़ा जाता था। परंतु आज का चुनाव तामझाम धनबल और बाहुबल का प्रतीक बन गया है। रतनपुरा विकासखंड पूर्व में जब बलिया जनपद का अंग था, तब यह बलिया जनपद की रसडा सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा था। 1980 के विधानसभा चुनाव में रतनपुरा विकासखंड की गुलौरी ग्राम पंचायत निवासी जनसंघ एवं भाजपा के जुझारू कार्य करता अच्छेलाल बागी ने भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा।

साइकिल और ट्रैक्टर से ही चुनाव प्रचार होता

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि के कार्यकर्ता अच्छेलाल बागी अत्यंत ही मिलनसार एवं सामान्य परिवार से थे। इस चुनाव में उन्होंने ने बताया कि कुल 16 हजार रुपये खर्च हुए। 4 हजार रुपए पार्टी से मिला था। जबकि शेष 12 हजार रुपये शुभचिंतकों से साइकिल और ट्रैक्टर से ही चुनाव प्रचार होता था। जिस गांव में प्रचार टोली पहुंची थी ,बड़े ही स्नेह भाव से ग्रामवासी नाश्ता एवं भोजन कराते थे। गांव गांव टोली बनाकर कार्यकर्ता वोट मांगते थे । अगर दूसरी पार्टी की टोली भी उसी गांव में मिल जाती थी तो आपस में काफी प्रेम व्यवहार से एक दूसरे से मिलते बात करते, और फिर अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ जाती। कहीं कोई बैर भाव नहीं था।

धनबल और बाहुबल का केंद्र बना चुनाव

1980 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के पित्र पुरुष पंडित अटल बिहारी बाजपेई चुनाव प्रचार के लिए रसड़ा के गांधी मैदान में आए थे, जबरदस्त भीड़ थी। इस भीड़ में ही उन्होंने अपने प्रत्याशी का परिचय कराते हुए कहा था कि मेरा प्रत्याशी अच्छा भी है, लाल भी है ,और बागी भी है। तभी से अटल जी के संबोधन के बाद से ही उस चुनावी समर से ही मेरा नाम सब ने अच्छेलाल बागी रख दिया। अटल जी का दिया हुआ यह नाम आज भी मेरे साथ जुड़ा हुआ है। हालांकि चुनाव में मुझे सफलता नहीं मिली, लेकिन सादगी के साथ लड़ा गया यह चुनाव मेरे जीवन का एक यादगार पल है ,और जब मैं आज के चुनाव को देखता हूं ,तो यही लगता है यह चुनावी महाभारत सादगी और संसदीय मर्यादा के बजाय धनबल और बाहुबल का केंद्र बन गया है।

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