उन्होंने स्पष्ट किया कि वह अपने पिता और दादा की परंपराओं का पालन कर रहे हैं और उन्हीं के आदर्शों को अपनाते हुए अपने गुरुओं का सम्मान कर रहे हैं। सुरेंद्र दिलेर ने बताया कि उनके परिवार में हमेशा से बुजुर्गों और गुरुओं का आदर और सम्मान किया जाता रहा है। उनके पिता और दादा हमेशा अपने से बड़े लोगों को ऊँचा स्थान देते थे और खुद नीचे बैठते थे, ताकि उनका आदर और सम्मान बना रहे. यह आदतें उन्होंने अपने परिवार से सीखी हैं और अब वह इन्हीं परंपराओं को आगे बढ़ा रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने मंच पर कुर्सियों पर बैठे गुरुओं का सम्मान करने के लिए जमीन पर बैठने का निर्णय लिया था। सुरेंद्र दिलेर के अनुसार, विपक्ष इस पूरे मामले को जान-बूझकर विवादित बना रहा है। उन्होंने इसे एक राजनीतिक चाल बताया और आरोप लगाया कि विपक्ष इसे समाज में गलत तरीके से प्रस्तुत कर रहा है। उनका कहना है कि जो बात महज एक साधारण सम्मान का प्रतीक है। उसे गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। वहीं सुरेंद्र दिलेर के अनुसार, उनका जमीन पर बैठने का मकसद अपनी जड़ों से जुड़े रहना और समाज के बुजुर्गों और गुरुओं का आदर करना है।
उन्होंने कहा कि उनके पिता भी चुनावी अभियान के दौरान जनता से मिलते समय हमेशा जमीन पर बैठकर ही बातचीत किया करते थे। यह उनकी पारिवारिक परंपरा है, जिसमें बड़ों का सम्मान करना और जमीन से जुड़ा रहना सिखाया जाता है। सुरेंद्र दिलेर का कहना है कि वे लगातार लोगों के बीच जाकर उनकी समस्याएं सुनते हैं और लोगों से जमीन पर बैठकर बातचीत करते हैं, ताकि वह जनता के और करीब आ सकें। उनका मानना है कि जमीन पर बैठकर लोगों के बीच जाने से उन्हें अधिक भरोसा मिलता है और उनके साथ एक बेहतर जुड़ाव बनता है। उनके इस तरीके को लोगों ने सराहा भी है क्योंकि इससे उनमें एक विनम्रता और सरलता का भाव दिखाई देता है। उन्होंने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि कुछ लोग इस मुद्दे को गलत तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं और समाज को भ्रामक संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं। सुरेंद्र दिलेर ने अपने कदम को सही ठहराते हुए कहा कि यह उनके बुजुर्गों की परंपरा का अनुसरण है और इसे किसी भी अन्य नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए।
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