आजमगढ़ में धर्मेंद्र तो लालगंज में दरोगा ने सरपट दौड़ाई साइकिल...दूसरे नबंर पर रहे निरहुआ और नीलम !


आजमगढ़। आजमगढ़ लोकसभा सीट से सपा के प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को जीत मिली है। उन्होंने भाजपा के दिनेश लाल यादव को 161035 मतों से हराया है। इस जीत से उत्साहित सपा कार्यकर्ताओं ने जमकर ढ़ोल बजाए और मिठाइयां बांटी। इस चुनाव में आजमगढ़ से भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ को 347204 मत मिले। जबकि सपा से धर्मेंद्र यादव को 508239 वोट मिले। बसपा के मशहूद शबीहा अहमद को 179839 मिले हैं। जबकि मौलिक अधिकार पार्टी के रविन्द्र नाथ शर्मा 3042 मत, जनराज्य पार्टी के पारस यादव को 2491 मत, निर्दलीय शशिधर को 2232 मत, मूल निवासी समाजपार्टी के महेन्द्र नाथ यादव 1905, निर्दलीय विजय कुमार 1735 मत व निर्दलीय पंकज कुमार यादव को 1599 मत प्राप्त किया। वहीं आजमगढ़ लोकसभा सीट के लिए भाजपा से दिनेश लाल यादव और सपा से धर्मेंद्र यादव चुनाव मैदान में रहे। मतगणना के दौरान दोनों प्रत्याशियों के बीच सुबह से ही कड़ी टक्कर देखने को मिल रही थी। सुबह पोस्टल बैलेट की गिनती से ही सपा के धर्मेंद्र यादव ने बढ़त बनाई तो राउंडवार यह अंतर बढ़ता ही गया। आखिरी राउंड से पहले यह बढ़त डेढ़ लाख से अधिक हो चुकी थी। दोपहर में ही जीत की सुगंध मिलते ही सपा कार्यालय पर ढोल ताशा बजाकर सपाई झूमने लगे। इस दौरान उनके द्वारा जमकर मिठाइयां भी बांटी गईं। धर्मेंद्र यादव एक बार मैनपुरी और दो बार बदायूं सांसद रहे चुके हैं। बसपा से मशहूद पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। 2019 में सपा-बसपा के गठबंधन के कारण अखिलेश ने एकतरफा जीत हासिल की थी। उन्हें 6 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। तब निरहुआ अखिलेश के मुकाबले आधा यानी तीन लाख से कुछ ज्यादा वोट हासिल कर सके थे। अखिलेश के इस्तीफा देते ही दो साल में यह वोट आधे से भी कम हो गए। 2022 में हुए उपचुनाव में सपा के धर्मेंद्र यादव को केवल 3 लाख 4 हजार ही वोट प्राप्त हुए। 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव को भाजपा के रमाकांत यादव से टक्कर मिली थी। अब रमाकांत यादव सपा से विधायक हैं। मुलायम को 3,40,306 और रमाकांत यादव को 2,77,102 वोट मिले थे। बसपा के शाह आलम (गुड्डू जमाली) ने तब भी 2,66,528 वोट हासिल कर लिए थे। इसी तरह उपचुनाव मे सपा की हार का बड़ा कारण बने बसपा प्रत्याशी रहे गुड्डू जमाली भी साइकिल के साथ आ गए हैं। यादव और मुस्लिम बहुल्य वाली आजमगढ़ सीट दल कोई हो सांसद यादव या मुस्लिम ही बनते रहे हैं। पहले लोकसभा चुनाव से 1971 तक यानी पांच इलेक्शन तक यह सीट कांग्रेस के पास रही। उसके बाद 1980 और 1984 में कांग्रेस ने वापसी की। 1952 में कांग्रेस के अलगू राय शास्त्री, 1957 में कालिका सिंह, 1962 में राम हरख यादव, 1967 और 1971 में चंद्रजीत यादव ने चुनाव जीता। यही कारण है कि भाजपा भी यादव पर ही दांव लगाती रही है। 2014 में मुलायम के खिलाफ रमाकांत यादव और उसके बाद दिनेश लाल यादव निरहुआ को उतारा है। इमरजेंसी के बाद यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई और जनता पार्टी के रामनरेश यादव सांसद बने। उनके मुख्यमंत्री बनने पर 1978 में कांग्रेस की मोहसिना किदवई यहां से सांसद बनीं। 1980 में जनता पार्टी सेक्युलर के चंद्रजीत यादव जीते। इंदिरा गांधी की शहादत से उपजी लहर में एक बार फिर कांग्रेस को यह सीट मिली। 1984 कांग्रेस के संतोष सिंह जीते। इस चुनाव के बाद कांग्रेस यहां जीतने को तरस गई। 1989 में बसपा के रामकृष्ण यादव और 1991 में जनता दल के चंद्रजीत यादव सांसद चुने गए। 1996 में सपा के टिकट पर रमाकांत यादव और 1998 में बसपा के अकबर अहमद डंपी सांसद बने। 1999 में सपा के रमाकांत यादव दोबारा जीते। 2004 और 2008 के उपचुनाव में डंपी फिर सांसद बने। 2009 में रमाकांत यादव ने भाजपा के टिकट पर यह सीट दोबारा हथिया ली। 2014 में मुलायम सिंह यादव और 2019 में अखिलेश ने यह सीट जीती। अखिलेश के इस्तीफे के बाद हुए उपचुनाव में 2022 में भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ ने सीट जीत ली।

लालगंज में दरोगा प्रसाद सरोज जीते

उधर लालगंज लोकसभा सीट से सपा प्रत्याशी दरोगा प्रसाद सरोज को जीत मिली है। उन्होंने भाजपा के नीलम सोनकर को 115023 मतों से हराया है। इस जीत से उत्साहित सपा कार्यकर्ताओं ने जमकर ढ़ोल बजाए और मिठाइयां बांटी। इस चुनाव में लालगंज से भाजपा प्रत्याशी नीलम सोनकर को 324936 मत मिले। जबकि सपा से दरोगा प्रसाद सरोज को 439959 वोट मिले। बसपा की इन्दु चौधरी को 210053 मिले हैं। जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के गंगेश 12271 मत, जनता क्रांति पार्टी के बलिन्दर को 4158 मत, निर्दलीय सुष्मिता सरोज को 2626 मत, रामप्यारे सरन विजेता को 2341 मत प्राप्त हुआ। जबकि नोटा पर 7094 लोगों ने मत दिया। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन से उतरीं बहुजन समाज पार्टी की प्रत्याशी संगीता आजाद ने बीजेपी प्रत्याशी नीलम सोनकर को आसान मुकाबले में हराया था। संगीता आजाद को 518,820 वोट मिले तो नीलम सोनकर के खाते में 3,57,223 वोट आए थे। इससे पहले 2014 के चुनाव में मोदी लहर के बीच यह सीट बीजेपी के खाते में चली गई थी। बीजेपी के टिकट पर नीलम सोनकर ने समाजवादी पार्टी के बेचई सरोज को कड़े मुकाबले में 63,086 मतों के अंतर से हराया था। बीएसपी के डॉक्टर बलिराम तीसरे स्थान पर रहे थे और उन्हें 2,33,971 वोट मिले थे। 1990 के बाद के राजनीतिक परिणामों पर नजर डालें तो यहां पर किसी भी दल का एकाधिकार नहीं रहा। कांग्रेस को 1984 के बाद से यहां पर जीत नहीं मिली है। जनता दल, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी को बारी-बारी से जीत मिल चुकी है। बहुजन समाज पार्टी को इस दौरान 4 बार जीत मिली तो समाजवादी पार्टी को 2 बार। भाजपा केवल 2014 में ही जीत सकी है। तीन दशकों तक रामधन का वर्चस्व पहली बार 1962 में अस्तित्व में आयी लालगंज सीट का नाम आते ही सभी की जुबान पर सहसा युवा तुर्क रामधन का नाम आ जाता है। पहली बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के विश्राम प्रसाद ने जीत हासिल की। उनके सामने थे रामधन। इस सीट पर सर्वाधिक बार विजय पताका फहराने वाले रामधन चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी थे। वह तीसरे नंबर पर रहे। 1967 में चुनाव हुआ तो रामधन कांग्रेस के टिकट पर पहली बार लोकसभा पहुंचे। इसके बाद इस सीट पर तीन दशक तक रामधन का ही कब्जा रहा। 1980 में सातवीं लोकसभा के चुनाव को छोड़ दिया जाए तो 1971 के चुनाव में तो इंदिरा लहर में रामधन ने जबरदस्त जीत हासिल की। इनके प्रतिद्वंदी शिवप्रसाद को 21ः मत ही मिले थे। जनता लहर में लालगंज सीट पर रामधन ने रिकार्ड बनाया। 1977 के इस चुनाव में रामधन ने भारतीय लोकदल के प्रत्याशी के तौर पर कांग्रेस के उम्मीदवार को डेढ़ लाख से अधिक वोटों से हराया। लालगंज लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र अतरौलिया, लालगंज, दीदारगंज, निजामाबाद, फूलपुर पवई आते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में पांचों सीटों पर सपा प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी।

Post a Comment

0 Comments