मुलायम के बिना अखिलेश के लिए बड़ी चुनौती है लोकसभा चुनाव...सपा को देनी है कड़ी परीक्षा!


लखनऊ। समाजवादी पार्टी पहली बार लोकसभा चुनाव 2024 नेताजी मुलायम सिंह के बिना लड़ रही है। नेताजी के उत्तराधिकारी और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते यह चुनाव अखिलेश यादव के लिए यह कड़ी परीक्षा है। पार्टी को ऊंचे पायदान पर पहुंचाने और पार्टी का पुराना वर्चस्व कायम रखने की चुनौती उन पर है। राजनीतिक जानकर बताते हैं कि सपा के गठन के बाद से अब तक जितने भी चुनाव हुए, उसमें मुलायम की बड़ी भूमिका रहती थी।
इस बार यूपी में विपक्षी गठबंधन को अखिलेश लीड कर रहे हैं। लेकिन मुलायम के बगैर वह पहला चुनाव लड़ रहे हैं। उनके सामने चुनौती कम नहीं है। पिछले दो लोकसभा चुनाव में सपा कुछ खास नहीं कर पाई है. साल 2012 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने सपा की बागडोर संभाल ली। इसके बाद 2014 और 2019 में हुए चुनाव में सपा का आंकड़ा महज पांच का ही रहा। जानकारों का कहना है कि 2024 अखिलेश के लिए बड़ी चुनौती इस कारण से भी है कि 2017 और 2022 दो विधानसभा चुनाव में भी उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा है। लेकिन यूपी में मुख्य विपक्षी होने के नाते वह विपक्ष में लीड भूमिका में हैं। लेकिन अपने गठबंधन के साथियों को नहीं संभाल पा रहे हैं।
सपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम छापने की शर्त पर बताया कि जमीन से जुड़े नेता होने के कारण ही मुलायम को धरती पुत्र की उपाधि से नवाजा जाता रहा है। वह संगठन को आगे बढ़ाने के लिए काम करते रहे। इसके साथ ही पिछड़े वर्ग के नेताओं से उनका सामन्जस्य बेहतर होने के कारण यादव के साथ दूसरी पिछड़ी जातियों में भी वह स्वीकार्य रहे। इटावा, मैनपुरी, कन्नौज में यादव बहुल सीट पर मजबूत एमवाई समीकरण के कारण वह हमेशा मैदान में बाजी मारते रहे। यादव के अलीवा दूसरी प्रभावशाली पिछड़ी जातियों पर पकड़ से वह हमेशा आगे रहे। वर्तमान में बागडोर अखिलेश के हाथों में है। लेकिन अभी वो परिपक्व लीडर नहीं बन पा रहे है। उन्हें अपने चाचा को मुख्य भूमिका में उतारना चाहिए क्योंकि उनके पास जमीनी अनुभव है। उम्मीदवार चयन में सभी से मंत्रणा के बाद ही उतारना चाहिए।इसके अलावा पुराने नेताओं की अनदेखी के कारण लोग पार्टी छोड़ रहे हैं। इसका ख्याल रखना होगा।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुलायम और अखिलेश की सपा में काफी अंतर है। मुलायम की क्षेत्र और प्रदेश के कार्यकर्ताओं पर जमीनी पकड़ थी, अखिलेश की उतनी पकड़ नहीं है। अखिलेश ने अपना प्रभाव बढ़ाने का काम नहीं किया। यही उनकी कमजोरी है। जिन लोगों को मुलायम ने तीस साल की राजनीति के चलते जोड़ा था, अखिलेश ने इस पर ध्यान नहीं दिया। चाहे आजम हों, राजभर, निषाद और रालोद, ऐसे साथियों को वो संभाल नहीं पाए। सोने लाल पटेल के परिवार से संबंध रख नहीं पाए। जातिगत नेताओं को क्षेत्र के कार्यकर्ताओं और संगठन में जोड़ने में उनका प्रभाव कमजोर हो रहा है। इस कारण वो अपने बड़े नेताओं को संभालने में लगे हैं। बड़े स्तर पर यादव भी इनसे छिटक रहा है। इसे चुनाव में संभाल कर रखने की उनकी सामने बड़ी चुनौती है।

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