तब तो दिलचस्प होगा अखिलेश Vs निरहुआ का महामुकाबला...सपा प्रमुख के आने की अटकलें हुई तेज!


MJ vivek/आजमगढ़। 18 वीं लोकसभा चुनाव का बिगुल कभी भी बज सकता है। प्रशासनिक अमला चुनावी प्रक्रिया को दुरुस्त करने में जुटा है तो दूसरी तरफ राजनीतिक दल अपने-अपने समीकरणों के आधार पर उम्मीदवारों को तय करने में लगे हैं। सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर अभिनेता से राजनेता बने दिनेश लाल निरहुआ पर भरोसा जताया है। निरहुआ ने वर्ष 2022 में हुए उपचुनाव में सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को मात्र 8 हज़ार वोटो से हराकर इस सीट पर 23 साल बाद फिर कमल खिलाया था। निरहुआ की यह जीत मतों के मामले में भले ही अंतर कम था लेकिन क्षेत्र के पांचो विधान सभाओं गोपालपुर, मुबारकपुर, आजमगढ़, सगड़ी व मेहनगर पर समाजवादी पार्टी का कब्जा होने के बावजूद जीत दर्ज कर सभी को अचंभित कर दिया था।

आजमगढ़ लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। हालांकि इस सीट पर उपचुनाव के उपविजेता धर्मेंद्र यादव को प्रभारी बनाया है। साथ ही तीसरे नंबर पर रहने वाले बसपा के पूर्व विधायक शाह आलम गुड्डू जमाली को अपने खेमे में कर लिया है। चर्चा है कि इस सीट पर कोई परिवार का ही सदस्य चुनाव लड़ सकता है ऐसे में या तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव या फिर धर्मेंद्र यादव या कोई और चुनावी ताल ठोक सकता है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने वर्ष 2019 के आम चुनाव में 60% मत पाकर तात्कालिक भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल निरहुआ को भारी मतों से हराया था। इसके साथ ही सपा संरक्षक अपने पिता स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव के वर्ष 2014 में कम मतों से मिले विजयश्री को भी बड़ा कर दिखाया था। लेकिन वर्ष 2022 की विधानसभा चुनाव के बाद नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में आने के कारण इस सीट से इस्तीफा दे दिया था। यहां से अब दोबारा चुनाव लड़ने की अटकलें तेज हो गई है। 

राजनैतिक प्रेक्षकों का मानना है कि राम लहर के रथ पर सवार सांसद निरहुआ को अखिलेश फिर मात दे सकते हैं ऐसे में उनके चुनावी ताल ठोकने की संभावना प्रबल होती जा रही है। गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी को इस सीट पर पहली बार विजय दिलाने का श्रेय पूर्व सांसद रमाकांत यादव को जाता है। उनके पास पहली बार इस सीट पर कमल खिलाने का भी अनोखा रिकॉर्ड है। ऐसे में समाजवादी पार्टी उन्हें भी प्रत्याशी बना सकती है लेकिन फिलहाल वह जेल में है। पिछले आम चुनाव से पहले निवर्तमान जिला अध्यक्ष हवलदार यादव ने भी तीन माह तक चुनाव प्रचार किया था उसके बाद स्वयं अखिलेश चुनाव लड़ने आए थे। उधर सांसद निरहुआ ने सपा प्रमुख को चुनाव लड़ने की खुली चुनौती दी है। उनका मानना है कि बेशक पिछले चुनाव में उन्होंने मुझे हरा दिया था लेकिन इस बार मैंने डेढ़ साल जनता के बीच काम किया है।

Post a Comment

0 Comments