स्वामी प्रसाद मौर्य ने छेड़ा नया विवाद...’सेंगोल’ को लेकर उठाए सवाल...

बीजेपी पर साधा निशाना


लखनऊ।
अपने बयानों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहने वाले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने अब एक नया विवाद छेड़ दिया है। मौर्य ने नए संसद भवन में सेंगोल की स्थापना को लेकर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सेंगोल को राजतंत्र का प्रतीक बताया है और भारत एक लोकतांत्रिक देश हैं. ऐसे में सेंगोल का देश की संसद में क्या काम हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य ने ट्वीट करते हुए नई संसद में सेंगोल की स्थापना को लेकर बीजेपी पर निशाना साधते हुए सवाल किया कि “सेंगोल राजदंड, राजतंत्र का प्रतीक था. आज देश में लोकतंत्र है, लोकतंत्र में राजतंत्र के प्रतीक सेंगोल का क्या काम? सेंगोल के प्रति भाजपा सरकार की दीवानगी इस बात का प्रमाण है कि इसको लोकतंत्र में विश्वास नहीं है, इसलिए भाजपा लोकतंत्र से हटकर राजतंत्र के रास्ते पर जा रही है जो लोकतंत्र के लिये खतरे की घंटी है।“

सपा नेता ने अब इसी राजदंड को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं. उनका साफ कहना है कि क्योंकि ये राजदंड राजतंत्र का प्रतीक है और भारत में लोकतंत्र हैं। इसलिए इसे देश की संसद में स्थापित नहीं करना चाहिए। वहीं दूसरी तरफ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी सेंगोल पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने दावा किया कि अगले साल लोकसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन हो जाएगा। “सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण (एक-हाथ से दूसरे हाथ में जाने) का प्रतीक है। लगता है भाजपा ने मान लिया है कि अब सत्ता सौंपने का समय आ गया है।

दरअसल, 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई संसद का उद्घाटन करेंगे। इसी दिन सेंगोल को लोकसभा स्पीकर की कुर्सी के पास स्थापित किया जाएगा। सरकार के मुताबिक ये राजदंड अंग्रेजों से भारत को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है, ठीक वैसे ही जैसे तमिलनाडु में चोल वंश के दौरान मूल रूप से इसका इस्तेमाल एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता हस्तांतरण के लिए किया जाता था। भारत की आजादी के समय अगस्त 1947 को अंग्रेजी अधिकारियों ने इसे सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर जवाहर लाल नेहरू को दिया था। जो अब तक इलाहाबाद म्यूजियम की नेहरू दीर्घा में रखा हुआ था। ये सेंगोल चांदी से निर्मित है और इस पर सोने की परत चढ़ाई गई है। मोदी सरकार ने इसे लोकसभा स्पीकर की कुर्सी के पास स्थापित करने का फैसला किया हैं।

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