एक साल के अंदर तीन राज्यों में मिली हार....
लखनऊ। भाजपा को कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मिली कड़ी पराजय ने उसके दक्षिण में विस्तार के मंसूबे पर गहरा धक्का लगा है। वहां की हार भाजपा के न जाने कितने सपने तोड़ दिये। एक वर्ष के अंदर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमितशाह की पार्टी को साल भर में एक के बाद एक तीन राज्यों से छुट्टी मिल गयी। बिहार में नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ कर राजद से हाथ मिला लिया। वहां भाजपा बाहर हो गयी। हिमाचल प्रदेश में भाजपा को हार मिली उसके बाद कर्नाटक में उससे भी बड़ी हार मिली। लगातार हार भाजपा के नेतृत्व पर सवाल खड़ा करने लगा। फिर भी उस हार पर यदि कोई मरहम लगा तो उत्तर प्रदेश नगर निकाय का परिणामों से लगा। प्रबल सूत्रों के अनुसार संघ परिवार के विभिन्न अनुषांगिक संगठनों ने कहना आरंभ कर दिया है कि भाजपा पर काबिज गुजरात लॉबी जेपी नड्डा को ढो रही है। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष के लिये भी यह खबर अच्छी नहीं है। उन पर हर राज्य इकाई की कार्यप्रणाली पर जरूरत से ज्यादा अंगुली करने का आरोप लगता है।
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बहुत बड़ी लकीर खींच दिया है। भाजपा शासित सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों में सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं। जितना यूपी में उनकी जरूरत है उतनी ही पश्चिम बंगाल से उनके लिये मांग उठती है। महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार, मध्यप्रदेश, दक्षिण भारत हो या नार्थईस्ट योगी अकेले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो कार्यकर्ताओं और जनता दोनों में लोकप्रिय हैं। उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में 17 के 17 नगर निगम जीतने का अनूठा रिकॉर्ड बनाने के बाद उत्तर प्रदेश की जनता ने योगी मॉडल पर मुहर लगा दिया है। योगी ने नगर पालिकाओं में भी बंपर जीत दर्ज किया। अखिलेश के गढ़ मैनपुरी, इटावा, फिरोजाबाद में सोनिया गांधी-राहुल गांधी के गढ़ रायबरेली- सुल्तानपुर-अमेठी में योगी ने भाजपा की विजय पताका फहराया है। यह सर्वविदित है कि भाजपा में टिकट संगठन बंटता है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर को छोड़ दिया जाय तो भाजपा की सांगठनिक निर्णयों में जरा भी हस्तक्षेप नहीं करते। लेकिन पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी कंधे पर रहती है। यदि भाजपा कहीं हारे तो स्थानीय नेता और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा जिम्मेदार, जीते तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री तथा भाजपा के चाणक्य अमितशाह की नीतियों के कारण विजय मिलता है।
उत्तर प्रदेश में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने जो किया है उससे राज्य को लेकर उनकी मंशा ठीक नहीं दिख रही है। उत्तर प्रदेश में नगर-निकाय की बड़ी जीत के बाद गृहमंत्री अमितशाह ने टीयूट से जो संदेश दिया उसमें योगी दूसरे नंबर के हकदार बताये गये। शाह ने लिखा कि यूपी की शानदार जीत के लिये प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह और उनकी टीम तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बधाई। आनन फानन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह को बुला कर यूपी नगर-निकाय चुनाव की शानदार विजय की बधाई दे दिया। यह जल्दबाजी बताती है कि केंद्र की मंशा योगी के प्रति उतनी निर्मल नहीं है जितनी होनी चाहिये। किससे छिपा है कि कानून व्यवस्था को लेकर अदम्य साहस के धनी योगी आदित्यनाथ की माफियाओं पर की गई जबरदस्त कार्रवाई ने उन्हें उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के अधिकांश जनता के दिलों में स्थापित कर दिया। योगी ने जनता के मन से माफिया का डर मिटाया है। जिस राज्य में वर्षों से मुख्यमंत्री के कक्ष के बगल एक डीलिंग रूम, एक व्यक्तिगत खजांची की परंपरा रही हो उस राज्य में एकाएक बेईमानों में मुख्यमंत्री का डर होना सामान्य उपलब्धि नहीं है। इसका विपरीत पक्ष भी है। आये दिन राज्य के थानों-तहसीलों व अन्य स्थानों से मंहगे घूसखोरी की शिकायत मिलती है। लेकिन देने वाला यह जनता है कि यह पैसा मैं अपनी गरज से दे रहा हूँ, लेने वाला भी यह बताता है कि योगी के कारण रेट मंहगा हो गया। योगी की यही उपलब्धि उन्हें राष्ट्रीय फलक पर स्थापित कर दिया है।
जहां यह स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री इसमें एक पैसे के भी हकदार नहीं है। 2007 से 2012 और 2012 से 2017 तक पिछली सरकारों में यह कह कर घूस लिया जाता था कि पैसा ऊपर जायेगा। या कथित महोत्सव में जायेगा। 2007 से 2017 तक शायद ही कोई ऐसा प्रोजेक्ट्स हो जिसमें निर्धारित आवंटित बजट का पैसा बाद में बढ़ाया न गया हो। बेईमानी की परिपाटी एक परंपरा बन गयी थी। हठ योगी ने अपने आत्मबल से यह मिथ तोड़ा है। जिस दिन योगी आदित्यनाथ के अनुसार राज्य में आर्थिक निवेश का खाका मूर्तिरूप लेगा उस दिन योगी अपने ईमानदार, शख्स छवि के साथ विकास पुरुष हो जायेंगे। योगी की साधना में एक और बेदाग उपलब्धि है कि उनको कोई अंबानी-अडानी चलाने का माद्दा नहीं रखता। इतना सब कुछ होने के बाद यदि राष्ट्रीय नेतृत्व योगी को साइड लाइन करेगा तो उसके परिणाम सकारात्मक आना मुश्किल होगा। बिहार में सत्ता जाने और हिमाचल प्रदेश तथा कर्नाटक विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा जिस द्वंद पर अटकी है वह यह कि जिस राज्य में जहां सक्षम नेतृत्व नहीं है वहां भाजपा हार रही है। ऐसे में जहां योगी आदित्यनाथ जैसा कर्मठ, बेदाग ज्वलंत हिंदुत्ववादी मुख्यमंत्री जो 2022 में सपा-रालोद-भासपा के गठजोड़ को ध्वस्त कर यूपी में 1989 के बाद दुबारा कोई सरकार वापस लौटी थी।
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