लखनऊ। समाजवार्दी पार्टी के संस्थापक और देश के पूर्व रक्षा मंत्री व यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव आखिरकार जिदंगी की जंग सोमवार सुबह करीब साढ़े आठ बजे मेदांता अस्पताल में हार गए। लेकिन कहा जाता है कि अपनी जवानी के दिनों अगर उनका हाथ अपने प्रतिद्वंदी की कमर तक पहुंच जाता था, तो चाहे वो कितना ही लंबा या तगड़ा हो, उसकी मजाल नहीं थी कि वो अपने-आप को उनकी गिरफ्त से छुड़ा लें। जी हां आज भी उनके गांव के लोग उनके चर्खा दांव को नहीं भूले हैं।
मुलायम सिंह यादव के चचेरे भाई प्रोफेसर राम गोपाल ने एक प्रोग्राम में बताया था कि अखाड़े में जब मुलायम की कुश्ती अपने अंतिम चरण में होती थी तो हम अपनी आंखे बंद कर लिया करते थे। हमारी आंखे तभी खुलती थीं जब भीड़ से आवाज आती थी, हो गई, हो गई और हम पता लग जाता था कि हमारे भाई ने सामने के पहलवान को पटकनी दे दी है।
मुलायम की प्रतिभा को सबसे पहले पहचाना था प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के एक नेता नाथू सिंह ने जिन्होंने 1967 के चुनाव में जसवंतनगर विधानसभा का सीट का उन्हें टिकट दिलवाया था। उस समय मुलायम की उम्र सिर्फ 28 साल थी और वो प्रदेश के इतिहास में सबसे कम उम्र के विधायक बने थे। उन्होंने विधायक बनने के बाद अपनी एमए की पढ़ाई पूरी की थी। वहीं जब 1977 में यूपी में रामनरेश यादव के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो मुलायम सिंह को सहकारिता मंत्री बनाया गया। उस समय उनकी उम्र केवल 38 साल थी।
चौधरी चरण सिंह मुलायम सिंह यादव को अपना राजनीतिक वारिस और अपने बेटे अजीत सिंह को अपना कानूनी वारिस कहा करते थे। लेकिन जब अपने पिता के गंभीर रूप से बीमार होने के बाद अजीत सिंह अमरीका से वापस भारत लौटे तो उनके समर्थकों ने उन पर जोर डाला कि वो पार्टी के अध्यक्ष बन जाएं। इसके बाद मुलायम और अजीत में प्रतिद्वंद्विता बढ़ी। लेकिन मुख्यमंत्री बनने का मौका मुलायम सिंह को ही मिला। 5 दिसंबर 1989 को उन्हें लखनउ के केडी सिंह बाबू स्टेडिएम में मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई और मुलायम ने रूंधे हुए गले से कहा था, लोहिया का गरीब के बेटे को मुख्यमंत्री बनाने का पुराना सपना साकार हो गया।
मुख्यमंत्री बनने के बाद तेजी से उभर रही भाजपा का मजबूती से सामना करने का फैसला किया, उस जमाने में उनके कहे गए एक वाक्य बाबरी मस्जिद पर एक परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा, ने उन्हें मुसलमानों के बहुत करीब ला दिया। यहीं नहीं 2 नवंबर 1990 को बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ रहे कारसेवकों को पहले लाठीचार्ज फिर गोलियां चली जिसमें एक दर्जन से अधिक कारसेवक की मौत हो गई। इस घटना के बाद भाजपा के समर्थन उन्हें मौलाना मुलायम कह कर पुकारने लगे।
4 अक्टूबर 1992 को उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया। लेकिन उन्हें लगा कि भाजपा के बढ़ते ग्राफ को नहीं रोक पाएंगे। इसलिए बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम से मिलकर चुनावी गठबधंन किया। वर्ष 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 260 में से 109 और बहुजन समाज पार्टी को 163 में से 67 सीटें मिली थीं और भाजपा को 177 सीटों से संतोष करना पड़ा था। मुलायम कांग्रेस व बसपा के समर्थन से दूसरी बार यूपी के सीएम पद की शपथ ली।
मुलायम सिंह यादव 1996 में संयुक्त मोर्चा की सरकार में रक्षा मंत्री बने। प्रधानमंत्री के पद से देवेगौड़ा के इस्तीफा देने के बाद वो भारत के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। शेखर गुप्ता ने इंडियन एक्सप्रेस के 22 सितंबर 2012 के अंक में मुलायम इज द मोस्ट पालिटिकल लेख में लिखा कि नेतृत्व के लिए हुए आंतरिक मतदान में मुलायम सिंह यादव ने जीके मूपनार को भारी अंतर से हरा दिया था। लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वी दो यादवों लालू और शरद ने उनकी राह में रोड़े अटकाए और इसमें चंद्रबाबू नायडू ने भी उनका साथ दिया। जिसकी वहज से मुलायम को प्रधानमंत्री का पद नहीं मिल सका। अगर उन्हें यह पद मिला होता तो वो गुजराल से कहीं अधिक समय तक गठबंधन को बचाए रख सकते थे।
मुलायम का राजनीतिक सफरः
- 1967 में पहली बार यूपी के जसवंत नगर से विधायक बने।
- 1996 मे तक मुलायम सिंह यादव जसवंत नगर से विधायक रहे।
- पहली बार वे 1989 में यूपी के मुख्यमंत्री बने।
- 1993 में वे दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बने।
- 1996 में पहली बार मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी से लोकसभा चुनाव जीता।
- 1996 से 1998 तक वे संयुक्त मोर्चा की सरकार में रक्षा मंत्री रहे।
- उसके बाद मुलायम सिंह यादव ने संभल और कन्नौज से भी लोकसभा का चुनाव जीता।
- 2003 में तीसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बने।
- 2009 में मैनपुरी से लोकसभा का चुनाव जीता।
- 2014 में मुलायम सिंह यादव ने आजमगढ़ और मैनपुरी दोंनों जगह से जीता। लेकिन मैनपुरी से त्यागपत्र दे दिया।
- 2019 में फिर मैनपुरी से लोकसभा के सदस्य बने।
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