मई डे यानी मजदूर दिवस-जानिए क्या है इतिहास


नई दिल्ली। हर साल की भांति इस साल भी 1 मई को देश-दुनिया में मजदूर दिवस मनाया जा रहा है। मजदूरों और श्रमिकों को सम्मान देने के उद्देश्य से हर साल एक मई का दिन इनको समर्पित किया जाता रहा है। इसे लेबर डे, श्रमिक दिवस, मजदूर दिवस, मई डे के नाम से भी जाना जाता है। मजदूर दिवस का दिन ना केवल श्रमिकों को सम्मान देने के लिए होता है बल्कि इस दिन मजदूरों के हक के प्रति आवाज भी उठाई जाती रही है। ताकी उन्हें समान अधिकार मिल सके। आइए जानें क्या है मजदूर दिवस का इतिहास और इस दिन को मनाने का मुख्य उद्धेश्य क्या है।

अमेरिका में 1 मई 1886 को आंदोलन की शुरूआत हुई थी। इस आंदोलन में अमेरिका के मजदूर सड़कों पर आ गए थे और वो अपने हक के लिए आवाज बुलंद करने लगे। इस तरह के आंदोलन का कारण था काम के घंटे क्योंकि मजदूरों से दिन के 15-15 घंटे काम लिया जाता था। आंदोलन के बीच में मजदूरों पर पुलिस ने गोली चला दी और कई मजदूरों की जान चली गई। वहीं 100 से ज्यादा श्रमिक घायल हो गए। इस आंदोलन के तीन साल बाद 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की बैठक हुई। जिसमे तय हुआ कि हर मजदूर से केवल दिन के 8 घंटे ही काम लिया जाएगा। इसी सम्मेलन में ही 1 मई को मजदूर दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा गया। साथ ही हर साल 1 मई को छुट्टी देने का भी फैसला लिया गया। अमेरिका में श्रमिकों के आठ घंटे काम करने के नियम के बाद कई देशों में इस नियम को लागू किया गया।

भारत में करीब 34 साल बाद 1 मई 1923 को चेन्नई से मजदूर दिवस मनाने की शुरूआत हुई। लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान की अध्यक्षता में ये फैसला किया गया। इस बैठक को कई सारे संगंठन और सोशल पार्टी का समर्थन मिला। जो मजदूरों पर हो रहे अत्याचारों और शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। इसका नेतृत्व कर रहे थे वामपंथी। 1 मई को हर साल मजदूर दिवस मनाने का उद्धेश्य मजदूरों और श्रमिकों की उपलब्धियों का सम्मान करना और योगदान को याद करना है। इसके साथ ही मजदूरों के हक और अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करना और शोषण को रोकना है। इस दिन बहुत सारे संगठनों में कर्मचारियों को एक दिन की छुट्टी दी जाती है।

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