केशव के ट्वीट ने बढ़ाई राजनैतिक पारा

लिखा अयोध्या काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है... अब मथुरा की तैयारी है




लखनऊ। प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के एक ट्वीट ने बुधवार को यूपी की राजनैतिक पारा बढ़ा दी। उन्होंने लिखा- अयोध्या काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है, मथुरा की तैयारी है...। साथ ही हैशटैग किया- जय श्री राम, जय शिव शंभू, जय श्री राधे-कृष्ण। यह भाजपा के भगवा एजेंडे का संकेत माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में मथुरा भी मुद्दा बन सकता है। फिलहाल, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण शुरू होने के बाद यूपी की राजनीति ने भी करवट ली है। दशकों तक अयोध्या से पर्याप्त दूरी बनाए रहे और खुद को धर्म निरपेक्ष कहने वाले गैर भाजपाई दलों के नेताओं ने धीरे-धीरे हिंदुत्व की ओर भी सधे कदम रखे हैं। भाजपा पर भगवान राम के नाम पर राजनीति का आरोप लगाने के साथ सपा मुखिया अखिलेश यादव यदा-कदा भगवान कृष्ण को अपना आराध्य बताते रहे हैं। वह मथुरा, चित्रकूट सहित कई धर्मस्थलों पर गए, वहां से राजनीतिक कार्यक्रमों की भी शुरुआत की।

इसी तरह कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने मंदिर-मंदिर जाना शुरू किया और बसपा ने भी ब्राह्मणों को रिझाने के लिए प्रबुद्धजन सम्मेलनों की शुरुआत अयोध्या से की। पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी रामलला के दर्शन करने पहुंचे। अखिलेश के मुंह से निकला जिन्ना और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अब्बाजान शब्द के साथ तंज चर्चा-चटखारों में रहा है। उल्लेखनीय है कि ढांचा विध्वंस की बरसी के ठीक पांच दिन पहले मौर्य के इस बयान का महत्व इसलिए भी है, क्योंकि वह विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय महासचिव रहे अशोक सिंहल के नेतृत्व में मंदिर आंदोलन में सक्रिय भागीदारी कर चुके हैं। वैसे यह ट्वीट उन्होंने उप मुख्यमंत्री के तौर पर किया है। उधर, मथुरा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गौरव ग्रोवर ने भी कहा है कि छह दिसंबर को कुछ संगठन शाही मस्जिद ईदगाह में लड्डू गोपाल का जलाभिषेक करना चाहते थे। धारा 144 लागू होने के कारण उन संगठनों ने अपने कार्यक्रम रद कर दिए हैं।

1832 से चल रहा श्रीकृष्ण जन्मस्थान का विवाद- मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मस्थान का परिसर 13.37 एकड़ का है। इसी में शाही मस्जिद ईदगाह भी है। मंदिर के पक्षकार दावा करते हैं कि मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर यहां मस्जिद बनवाई थी। 1832 में इस मामले में पहला मुकदमा हुआ था। हालांकि, 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी के बीच यथास्थिति बनाए रखने का समझौता हो गया था। फिर उस समझौते को चुनौती देते हुए तमाम वाद न्यायालय में दायर किए जा चुके हैं।

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