तब लगे नारा ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’
दलित-पिछड़ों को कराया राजनैतिक ताकत का अहसास
दलित व पिछड़ी जातियों के जोड़ वाला समीकरण भले ही मुलायम व मायावती सरकार को लंबी उम्र नहीं दे पाया, लेकिन इन वर्गो को उनकी राजनीतिक ताकत का अहसास जरूर करा दिया। वर्ष 1990 में कारसेवकों पर गोली चलाने के बाद मुलायम सिंह सरकार को समर्थन देकर उसे कुछ महीने टिकाए रखने के आरोपों ने उसे हिंदुओं के बीच कमजोर किया तो वहीं 1993 के सपा-बसपा के प्रयोग ने उसकी जड़ें कमजोर कर डालीं। राजनीतिक अस्थिरता ने हरिशंकर तिवारी, अतीक अहमद जैसे बाहुबलियों की राजनीति में पूछ बढ़ा दी। इससे उत्साहित बाहुबलियों ने तेजी से राजनीति की ओर कदम बढ़ाया।
मुलायम सिंह बने दूसरी बार मुख्यमंत्री
हिंदुत्व बनाम जाति के सियासी दांव की जोर-आजमाइश के बीच संघ परिवार ने चार जनादेश यात्राएं निकालने की घोषणा कर एक तरह से मंदिर मुद्दे पर जनमत संग्रह का एलान कर दिया। प्रदेश में एक यात्रा कल्याण सिंह के नेतृत्व में निकली। चार यात्राओं में कल्याण की यात्रा ही ऐसी थी, जिसकी राह लोग आंधी-पानी के बीच भी आधी-आधी रात तक ताकते थे। संघ परिवार के रणनीतिकारों को पूरा भरोसा था कि राम लहर के सामने मंडल की लहर टिक नहीं पाएगी और भाजपा फिर सरकार बना लेगी, पर ऐसा हो नहीं पाया। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद उसे विपक्ष में बैठना पड़ा। बदले समीकरण में धुर विरोधी कांग्रेस के सर्मथन से मुलायम सिंह यादव दूसरी बार मुख्यमंत्री बन गए।
कांशीराम की सलाह पर बनी सपा
साल 1991 में कांशीराम प्रदेश की राजनीति में पहचान बन गई थी। दलितों के बीच भावनात्मक रूप से उनकी पकड़ निरंतर मजबूत हो रही थी। साइकिल से घूम-घूम कर अनुसूचित जातियों को उनके वोट की ताकत याद दिलाने वाले कांशीराम का साक्षात्कार छपा। जिसमें उन्होंने कहा था कि मुलायम से वह हाथ मिला लें तो यूपी से सभी दलों का सूपड़ा साफ हो जाएगा। जिसे पढ़ने के बाद मुलायम कांशीराम से मिलने दिल्ली स्थित उनके आवास पहुंचे। इसी मुलाकात में कांशीराम व मुलायम में नए समीकरणों पर विस्तार से बात हुई। साल 1991 में विधानसभा चुनाव हुए तो कांशीराम ने मुलायम सिंह यादव के खिलाफ जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र में बसपा का कोई उम्मीदवार नहीं उतारा। लोकसभा चुनाव में हिंसा के चलते इटावा में फिर चुनाव हुआ तो कांशीराम भी चुनाव लड़ने मैदान में उतरे। लिहाजा कांशीराम की जीत के लिए मुलायम ने जिस तरह अपने उम्मीदवार रामसिंह शाक्य को दांव पर लगाया था, उसके चलते उनके व रामसिंह के बीच काफी दिनों तक अनबन भी रही। लेकिन मुलायम की नजर भविष्य की संभावना टिकी थी। कांशीराम ने ही मुलायम को पिछड़ों को लामबंद करने का गुर समझाते हुए पार्टी बनाने की सलाह दी। इसी बीच मुलायम ने 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया।
मुलायम-कांशीराम की दोस्ती चढ़ी परवान
मुलायम व कांशीराम की दोस्ती परवान चढ़ी और दोनों पार्टियों ने पहली बार चुनावी गठबंधन कर भाजपा को पटखनी देने की तैयारी की। तय हुआ कि लोकसभा चुनाव में बसपा 60 और सपा 40 प्रतिशत सीटों पर लड़ेगी, जबकि विधानसभा चुनाव में सपा ज्यादा सीटों पर लड़ेगी। सपा-बसपा का गठबंधन हुआ। नारे लगे, ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’। बसपा ने 164 उम्मीदवार मैदान में उतारे जबकि मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी ने 256 प्रत्याशी खड़े किए। सपा व बसपा में गठबंधन के बावजूद 176 सीटें ही उनके हिस्से आईं। सपा को 109 तो बसपा को 67 सीटें मिलीं। भाजपा 177 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। लेकिन अन्य दलों के समर्थन से मुलायम सिंह के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनी। बसपा ने इससे पहले यूपी में 15 से ज्यादा सीटें नहीं जीती थीं। सपा के साथ गठबंधन पर उसे 67 सीटें मिलीं। कांशीराम ने पार्टी की उपाध्यक्ष रहीं मायावती को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना दिया। प्रभारी के रूप में वे अप्रत्यक्ष रूप से पूरी सरकार ही चलाने की कोशिश करने लगीं। इसके बाद, मुलायम बसपा से पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगे। उन्होंने पहले जनता दल, भाकपा और माकपा के विधायकों को तोड़ा और फिर बसपा के विधायकों पर डोरे डालने शुरू कर दिए।
भाजपा के पक्ष में चल रही हिंदुत्व की आंधी के सामने सपा व बसपा का जातीय समीकरण कोई बड़ा करतब नहीं दिखा पाया। लेकिन सपा-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस सहित अन्य कुछ दलों के बाहर से मिले सर्मथन से 177 विधायकों वाली सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को सत्ता में आने से रोक जरूर लिया। हालांकि, बाद में ‘स्टेट गेस्ट हाउस कांड’ के रूप में राजनीति में वैचारिक की जगह शारीरिक लड़ाई को वह विभत्स रूप सामने आया जिसने दोस्ती-दुश्मनी का ऐसा अध्याय लिख डाला, जिसका इससे पहले प्रदेश की राजनीति में कोई उदाहरण नहीं मिलता। प्रदेश ने दो साल के भीतर मुलायम व मायावती के रूप में दो मुख्यमंत्री देखे, लेकिन कोई भी टिकाऊ सरकार नहीं दे पाया।
0 Comments