लखनऊ। प्रदेश के बाराबंकी जिले के सिरौलीगौसपुर तहसील क्षेत्र के अगेहरा गांव की एक बेटी, पूजा पाल, ने अपनी मेहनत और प्रतिभा से न केवल देश का नाम रोशन किया, बल्कि लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई। छप्पर नुमा घर में दीये की रोशनी में पढ़ाई करने वाली पूजा ने विज्ञान के क्षेत्र में अपने अनूठे प्रयोग के दम पर जापान में भारत का परचम लहराया। लेकिन यह विडंबना ही है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का गौरव बढ़ाने वाली इस बेटी के घर में आज भी बिजली और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं।
पूजा के पिता पुत्तीलाल मजदूरी करते हैं, जबकि मां सुनीला देवी एक सरकारी स्कूल में रसोईया हैं। पांच भाई-बहनों के साथ छोटे से खरपतवार छप्पर वाले घर में रहने वाली पूजा की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। घर में बिजली कनेक्शन के लिए मीटर तो आ गया है, लेकिन खंभे से घर तक केबल लाने के लिए पैसे नहीं हैं। इसके बावजूद, पूजा ने कभी अपनी पढ़ाई और सपनों को रुकने नहीं दिया। वह न केवल एक मेधावी छात्रा हैं, बल्कि घरेलू जिम्मेदारियों में भी पूरा योगदान देती हैं। चारा काटना, पशुओं की देखरेख और अन्य घरेलू कामों के बीच वह पढ़ाई के लिए समय निकालती हैं।
पूजा की प्रतिभा तब पहली बार सामने आई, जब उन्होंने कक्षा 8 में एक अनोखा विज्ञान मॉडल बनाया, धूल रहित थ्रेशर मशीन। उनके स्कूल के पास थ्रेशर मशीन से उड़ने वाली धूल से छात्रों को होने वाली परेशानी ने उन्हें इस मॉडल को बनाने के लिए प्रेरित किया। टीन और पंखे की मदद से बनाए गए इस मॉडल में धूल एक थैले में जमा हो जाती है, जो न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित है, बल्कि किसानों के लिए भी उपयोगी है। इस मॉडल को बनाने में पूजा ने लगभग 3,000 रुपये खर्च किए, जो उनके परिवार के लिए बड़ी रकम थी। यह मॉडल वर्ष 2020 में जिला और मंडल स्तर पर चुना गया, फिर राज्यस्तरीय प्रदर्शनी और अंततः राष्ट्रीय विज्ञान मेले तक पहुंचा। वर्ष 2024 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय विज्ञान मेले में भी पूजा के मॉडल ने सभी का ध्यान खींचा। उनकी प्रतिभा को देखते हुए जून 2025 में भारत सरकार ने उन्हें शैक्षिक भ्रमण के लिए जापान भेजा। वहां पूजा ने अपने मॉडल और विचारों से न केवल तारीफ बटोरी, बल्कि यह भी साबित किया कि प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती।
जापान से लौटने के बाद पूजा का सपना है कि वह अपने गांव के गरीब बच्चों को पढ़ाए और उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाए। उनकी कहानी जितनी प्रेरणादायक है, उतनी ही व्यवस्था पर सवाल भी खड़े करती है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन करने वाली पूजा के पास न तो समुचित प्रशिक्षण सुविधाएं हैं, न ही आर्थिक सहयोग। उनके घर में बिजली और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव आज भी बना हुआ है। हालांकि, जिला प्रशासन ने अब उनके घर में बिजली और शौचालय उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है। पूजा पाल की मेहनत, लगन और उपलब्धियां आज की युवा पीढ़ी के लिए एक मिसाल हैं। लेकिन उनकी कहानी यह सवाल भी उठाती है कि क्या हमारी व्यवस्था प्रतिभाओं को पहचानने और संवारने में अब भी चूक रही है? पूजा जैसी बेटियां साबित करती हैं कि अगर जज़्बा और मेहनत हो, तो कोई भी मुश्किल हालात सपनों को रोक नहीं सकते। अब समय है कि समाज और सरकार ऐसी प्रतिभाओं को वह समर्थन और संसाधन दे, जिसकी वे हकदार हैं।
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