लखनऊ। प्रदेश के बरेली में साल 2010 में चार पुलिसकर्मियों ने आईपीएस अधिकारी कल्पना सक्सेना की हत्या की कोशिश की थीं उस समय कल्पना सक्सेना बरेली में पुलिस अधीक्षक यातायात के पद पर तैनात थीं। मामला तब सामने आया, जब उन्हें जाट रेजिमेंट से सूचना मिली कि नकटिया पुल के पास कुछ सिपाही ट्रक चालकों से अवैध वसूली कर रहे हैं। सूचना मिलते ही उन्होंने अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचकर चारों सिपाहियों को रंगे हाथों पकड़ लिया। इस दौरान इन पुलिसकर्मियों ने अफसर को अपनी गाड़ी से कुचलने की कोशिश की।
जब कल्पना सक्सेना ने चारों सिपाहियों रविंद्र, मनोज कुमार, रविंद्र सिंह और धर्मेंद्र को रोकने की कोशिश की, तो वे अपनी गाड़ी लेकर भागने लगे। इस दौरान कल्पना ने एक सिपाही को पकड़ लिया। बाकी तीनों अपने साथी को छुड़ाने के लिए तेज रफ्तार कार आईपीएस अधिकारी की ओर दौड़ा दी, जिससे वह बाल-बाल बचीं। इसके बाद आरोपियों ने उन्हें धक्का दे दिया। इस वजह से वो सड़क पर गिर गईं और उन्हें गंभीर चोटें आईं। घटना के तुरंत बाद कल्पना सक्सेना को अस्पताल में भर्ती कराया गया और कैंट थाने में चारों सिपाहियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। मामले की जांच शुरू हुई और चारों को निलंबित कर दिया गया। पुलिस ने चार्जशीट दाखिल करने के बाद अदालत में मुकदमा चलाया। करीब 14 साल तक चली सुनवाई के बाद बरेली की भ्रष्टाचार निवारण अदालत ने चारों पुलिसकर्मियों को हत्या के प्रयास का दोषी ठहराया है। अदालत के स्पेशल जज सुरेश कुमार गुप्ता ने चारों आरोपियों को दोषी करार दिया और उन्हें जेल भेज दिया। अब अदालत सोमवार, 24 फरवरी 2025 को इनकी सजा का ऐलान करेगी। यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें खुद पुलिसकर्मी ही अपराध में शामिल थे। आमतौर पर पुलिस का काम अपराध रोकना होता है। लेकिन जब कानून के रक्षक ही अपराधी बन जाएं तो यह वाकई चिंता का विषय बन जाता है। कल्पना सक्सेना जैसी अधिकारी की हिम्मत ने यह दिखाया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में ईमानदार अधिकारी किसी भी हद तक जाने को तैयार होते हैं। आईपीएस कल्पना सक्सेना वर्तमान में गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट में डीआईजी के पद पर तैनात हैं। इस घटना के बाद भी उन्होंने अपने कर्तव्यों से पीछे हटने के बजाय ईमानदारी और हिम्मत के साथ अपनी सेवा जारी रखी। अब सोमवार को अदालत का अंतिम फैसला आएगा, जिससे यह तय होगा कि दोषियों को कितनी सजा मिलेगी।
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