हर्षा ने कहा कि मै पहले से ही मेडिटेशन और साधना कर रही थी। गुरुजी ने भी मुझे कहा कि तुम अच्छी साधना कर लेती हो। लेकिन गुरुदेव से जो मंत्र मुझे प्राप्त हुआ और उसके बाद जो साधना मैंने की उस साधना में मुझे बहुत सी अनुभूतियां हुईं। इन अनुभूतियों को गुरुदेव से शेयर करती रही। उन्हें बताती रही कि ये हो रहा है, वो हो रहा है।दस-दस घंटे उनके सामने बैठी रहतीकहा कि इसके बाद नवरात्र में नौ दिनों तक उनके सानिध्य में रही। मैं चाहती थी कि उनके साथ रहकर कुछ और सीख सकूं। असल में कोई भी गुरु कभी आपको डायरेक्टली कुछ नहीं सिखाते, लेकिन इनडारेक्टली बहुत कुछ सीखा जाते हैं। आप को यह सब चीजें कैच करना आना चाहिए। आज भी मैं उनसे बात कम करती हूं, केवल उनके सामने बैठी रहती हूं। दस-दस घंटे बैठी रहती हूं। उनके सानिध्य में आकर मेरा पैशन लेबल बहुत बढ़ हो गया।
अपने पहले वाली जीवनचर्या और आज पर हर्षा ने कहा कि पहले मेरा शेड्यूल कुछ और था लेकिन गुरुदेव से मिलने के बाद यह पूरी तरह से बदल गया है। अब मेडिटेशन, मंत्र जाप और साधना सभी चीजें होती हैं। इनकी अनुभूतियों को गुरुदेव को बताती भी रहती हूं। अब जो टाइमिंग उन्होंने बताया है, जो शेड्यूल बताया है उसी के अनुसार सब करती हूं। उन्होंने बताया है कि क्या करना है, क्या नहीं करना है। अब उनके बताई चीजों के अनुसार ही कार्यों को करती हूं। कहा कि उत्तराखंड में अकेले ही रहती हूं, इसलिए अपनी चीजों को अच्छे से मैनेज करती जाती हूं। रीडिंग करती हूं, अगर शाम में पूजा में बैठी हूं तो डेढ़-दो घंटा लगता है। कभी-कभी मिड नाइट साधना, जाप और मेडिटेशन होता है। हर चीज को गुरुदेव के अनुसार ही करती हूं। हर्षा अब तक दस बार केदारनाथ और चार बार बद्रीनाथ का दर्शन कर चुकी हैं। बार-बार यहां जाने के पीछे के राज पर हर्षा ने बताया कि साधु, संत, अघोरी इन लोगों से मिलना मुझे पसंद है। हमारे मन मे बहुत से सवाल होते हैं। मैं इन सवालों का जवाब खोजती रहती हूं, साधू-संतों गुरुदेव से पूछती रहती हूं। जो नहीं पूछती लेकिन गुरुजी जब उन चीजों के बारे में बताते हैं तो ध्यान से सुनती रहती हूं। मैं चीजों को सीखना चाहती हूं, मुझे सुनना ज्यादा पसंद है।
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