UP में एनकाउंटर से कम हो गए अपराध! क्या है सच? इन आकंड़ों ने चौंकाया!



लखनऊ। उत्तर प्रदेश में साल 2017 की मार्च में योगी सरकार आने के बाद से ही एनकाउंटर की चर्चा है। बीते साढ़े सात सालों में 12,964 एनकाउंटर्स हुए। जब विपक्ष इस पर सवाल करता है तो सरकार और सत्ताधारी दल की ओर से यह जवाब आता है कि इससे क्राइम कंट्रोल हो रहा है। साथ ही अपराधियों में भय पैदा हो रहा है। अब इसका सच क्या है? इसको लेकर एक डेटा सामने आया है।
राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो (NCRB) द्वारा साल 2022 तक के डेटा के अनुसार कुल अपराधों में बढ़ोत्तरी हुई है। साल 2017 में जहां कुल 3 लाख 10 हजार 84 अपराध दर्ज किए गए वहीं साल 2022 में 4 लाख 1 हजार 787 मामले सामने आए। हालांकि साल 2017 के मुकाबले साल 2022 में हत्या, हत्या करने की कोशिश, एसिड अटैक, अपहरण, फिरौती के लिए अपहरण, रेप, दंगे, चोरी, फ्रॉड, रैश ड्राइविंग के मामलों में कमी दर्ज की गई है। वहीं धर्म से संबंधित अपराधों में बढ़ोत्तरी सामने आई है।

यूपी में अपराध             2017                         2022

कुल अपराध।             3,10,084                    4,01,787

हत्या।                        4,324                     3,491

हत्या करने की कोशिश  4,939                        3,788

एसिड अटैक।               56                               2

अपहऱण।                   19,921                     16,263

फिरौती के लिए अपहरण।   46।                         30

रेप                              4,246                        3,690

दंगे                              8,990।                      4,478

चोरी                            60,434।                    45,625

डकैती                         263                               80

फ्रॉड                         2,862                              2,416

लापरवाही से वाहन चलाना 23,003                      22,263

धर्म से संबंधित अपराध     144                             220

राज्य में एनकाउंटर्स की बात करें तो इसको लेकर सवाल उठते रहे हैं। बीते साल अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य से 2017 से राज्य में कथित तौर पर हुई पुलिस मुठभेड़ हत्याओं की जांच/अभियोजन की प्रगति पर एक "व्यापक हलफनामा" मांगा था।
NHRC के अनुसर पुलिस मुठभेड़ में किसी की मृत्यु होने की सूचना मिलते ही थाने के प्रभारी अधिकारी को उसे उचित रजिस्टर में दर्ज करना चाहिए। यदि मुठभेड़ दल के सदस्य उसी थाने से संबंधित हैं, तो जांच को आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) जैसी स्वतंत्र जांच एजेंसी को सौंपना अनिवार्य है।
NHRC की गाइडलाइन में कहा गया है कि भारतीय न्याय अधिनियम की उचित धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए और जांच अनिवार्य रूप से सीआईडी को सौंपी जानी चाहिए। पुलिस कार्रवाई के दौरान मृत्यु होने वाले सभी मामलों में मजिस्ट्रेट जांच अनिवार्य रूप से होनी चाहिए मृतक के निकटतम रिश्तेदार को अनिवार्य रूप से जांच में शामिल किया जाना चाहिए।
गाइडलाइंस के मुताबिक मजिस्ट्रेट जांच/पुलिस जांच में दोषी पाए गए अधिकारियों के खिलाफ त्वरित अभियोजन और अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए। घटना के तुरंत बाद संबंधित अधिकारियों को कोई आउट ऑफ टर्न प्रमोशन या तत्काल वीरता पुरस्कार नहीं दिया जाएगा।
मृतक के अक्षुण्ण फिंगरप्रिंट रासायनिक विश्लेषण के लिए भेजे जाएं. किसी भी अन्य फिंगरप्रिंट का पता लगाया जाना चाहिए, विकसित किया जाना चाहिए, उठाया जाना चाहिए और रासायनिक विश्लेषण के लिए भेजा जाना चाहिए। पोस्टमार्टम जिला अस्पताल में दो डॉक्टरों द्वारा किया जाना चाहिए, उनमें से एक, जहां तक संभव हो, जिला अस्पताल का प्रभारी/प्रमुख होना चाहिए। पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी की जाएगी और उसे संरक्षित किया जाएगा।

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