ससुर के बोए कांटे बहू की राह में बन रहे शूल... सपा ने यहां भाजपा के पूर्व सांसद पर खेला दांव!


रॉबर्ट्सगंज। पिछले दो चुनावों में रॉबर्ट्सगंज (सुरक्षित) सीट पर आसानी से जीत दर्ज करने वाले राजग की प्रत्याशी रिंकी कोल (अपना दल-एस) को इस बार कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा रहा है। इसके पीछे दो प्रमुख वजहें हैं। एक तो यह कि मिर्जापुर की तर्ज पर सपा ने इस सीट पर भी भाजपा के पूर्व सांसद छोटेलाल खरवार जैसे कद्दावर प्रत्याशी को उतारकर कड़ी चुनौती पेश की है। छोटेलाल ने 2014 में इसी सीट से भगवा परचम फहराया था। दूसरी चुनौती रिंकी के ससुर और अपना दल (एस) के मौजूदा सांसद पकौड़ी लाल के उन बयानों से मिल रही है, जो उन्होंने पिछले दिनों सवर्णों के खिलाफ दिए थे। यानी ससुर के बोए कांटे बहू की राह में शूल बनते दिख रहे हैं। बसपा ने भी धनेश्वर गौतम को मैदान उतारकर सबसे अधिक मुश्किलें रिंकी कोल के लिए पैदा की हैं। बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड की सीमा से सटे सोनभद्र जिले को बालू और पत्थरों की खदानों और अन्य खनिज भंडारों के चलते सोनांचल कहा जाता है। वहीं, पावर हब होने के कारण इस जिले को देश की ऊर्जा राजधानी भी कहते हैं। इसके वावजूद हर चुनाव में बड़ा मुद्दा जिले का विकास ही रहता है। विस्थापन, पुनर्वास, पलायन, रोजगार और पिछड़ेपन को लेकर भी खूब सवाल उठते हैं। पर, चुनावी रथ आगे बढ़ते ही इन सबकी गूंज मंद पड़ चुकी है। कड़वा सच तो यह है कि जब चुनाव जातीय समीकरणों पर हो रहे हों, तो मुद्दे गौण हो जाते हैं। रॉबर्ट्सगंज सीट 2019 से राजग में शामिल अपना दल (एस) के खाते में है। चुनाव अंतिम दौर में पहुंचते-पहुंचते मुख्य मुकाबला अपना दल (एस) और सपा के बीच सिमट गया है। बहरहाल छोटेलाल खरवार के मैदान में उतरने से इस बार स्थानीय बनाम बाहरी प्रत्याशी का मुद्दा भी उछाला जा रहा है। रॉबर्ट्सगंज सदर विधानसभा क्षेत्र के नई बाजार के रहने वाले राम सजीवन सुशवाहा कहते हैं, रिंकी कोल से मिलने के लिए मिर्जापुर जाना होगा, जबकि छोटे लाल स्थानीय हैं। वहीं, जीऊत खरवार छोटेलाल को सजातीय होने के साथ ही जनता के बीच रहने वाला नेता बताते हैं।

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