आजमगढ़। लोकसभा चुनाव एक बार फिर सामने है और वोटरों को घोषित प्रत्याशियों में से ही किसी के पक्ष में मतदान करना होगा। हर बार की तरह से फिर महिला और मुसलमानों की बात होगी, खास बात यह कि मुसलमानों की खुद को सबसे बड़ा हितैषी कहने वाली समाजवादी पार्टी के टिकट बाक्स में अब तक न तो महिला दिखी और न ही मुसलमान। समाजवादी पार्टी ने वर्ष 1996 से लोकसभा चुनाव में एंट्री की और तबसे अब तक आजमगढ़ में केवल यादव प्रत्याशियों को ही टिकट दिया गया। वर्ष 1996 से 1999 तक पार्टी ने रमाकांत यादव को मैदान में उतारा। वर्ष 2004 में जब रमाकांत ने बसपा का दामन थामा, तो उनके मुकाबले सदर विधायक दुर्गा प्रसाद यादव को उतार दिया, लेकिन दुर्गा प्रसाद यादव हार गए। 2008 में उपचुनाव हुआ तो पूर्व मंत्री बलराम यादव को टिकट दिया गया। बलराम यादव तीसरे पायदान से ऊपर नहीं पहुंच सके, फिर 2009 में भाजपा के टिकट पर मैदान में आए रमाकांत यादव के खिलाफ पुनः दुर्गा प्रसाद यादव को टिकट दिया गया, लेकिन तब भाजपाई हो चुके रमाकांत के सामने दुर्गा प्रसाद यादव टिक नहीं सके।रमाकांत यादव के आगे दुर्गा, बलराम की हार को देखते हुए वर्ष 2014 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के मुखिया, पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को खुद ताल ठोंकना पड़ी, तब जाकर सपा की वापसी हो सकी। उसके बाद वर्ष 2019 में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने चुनाव लड़कर यह सीट बचाई। वहीं अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद 2022 में हुए उपचुनाव में मुलायम सिंह के परिवार के ही धर्मेंद्र यादव को उतारा गया, वह भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ के आगे हार गए। सपा ने इस चुनाव में भी धर्मेंद्र यादव को फिर मौका दिया है। आजमगढ़ सीट पर कांग्रेस को छोड़कर किसी बड़ी पार्टी ने महिला पर भरोसा नहीं किया। मुसलमानों की बात करें, तो कांग्रेस ने कुल चार बार, बसपा ने छ: बार, भाजपा ने एक बार मुस्लिम प्रत्याशियों पर भरोसा जताया है। बात करते हैं लालगंज (सुरक्षित) सीट की तो इसका गठन वर्ष 1962 में हुआ और 1996 से सपा ने लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारना शुरू किया। इस सीट पर मुसलमान तो नहीं, लेकिन अनुसूचित जाति की महिला को टिकट दिया जा सकता था। इस सीट पर कांग्रेस ने दो बार, बसपा ने दो बार और भाजपा ने चार बार महिला प्रत्याशियों पर भरोसा जताया है।
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