मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिये 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या पहुंचने का आह्वाहन किया गया था। विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। देश भर से कारसेवक अयोध्या के लिये कूच कर चुके थे। उत्तर प्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने घोषणा कर रखी थी कि 30 अक्टूबर को अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पायेगा। अयोध्या की ओर जाने वाले सभी मार्ग बंद कर दिये गये थे। वाराणसी, लखनऊ, कानपुर, नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों किसी भी तरफ से कोई वाहन अयोध्या नहीं आ सकता था। ऐसे में बहुत बड़ी संख्या में पैदल ही देश के कोने-कोने से लोग अयोध्या आने लगे थे। अयोध्या के आस-पास के जिलों के लोग आतिथ्य स्वीकार कर भूखें कारसेवकों को भोजन कराते और अयोध्या की ओर उन्हें भेजने का दायित्व पूरा करते थे। इसी क्रम में बस्ती जिले में सरयू नदी से जुड़े सांड़पुर गांव में स्थानीय लोगों ने देश भर से आ रहे कारसेवकों को सांड़पुर में भोजन-विश्राम का कार्यक्रम चल रहा था। पुलिस को जब यह पता चला कि सांड़पुर में कारसेवकों के लिये भंडारा चल रहा है तो पुलिस ने गांव घेर कर आयोजकों को चेतावनी देते हुये भंडारा बंद करवा दिया। सांड़पुर निवासी सत्य प्रकाश सिंह के अनुसार 22 अक्टूबर 1990 को ग्रामीणों को पुलिस बल ने घेर कर मरना-पीटना शुरू कर दिया। पुलिस को खबर लग गयी थी कि इस गांव में असम, बंगाल आदि के कारसेवकों को भोजन-विश्राम करवा के सरयू नदी पार करवा दिया जा रहा है। पुलिस के बार बार मना करने के बाद भी हम लोग कारसेवकों को भोजन करवाते थे। जिससे पुलिस बल का आक्रोश बहुत बढ़ गया। वह गांव घेर कर लोगों पर लाठीचार्ज (पिटाई) करने लगी। पुलिस के दमन का लोगों ने विरोध किया तो पुलिस ने अंधाधुंध गोली चलाया। जिसमें दो ग्रामीणों सत्यवान सिंह और रामचन्द्र यादव की मौत हो गयी थी। 1990 की कारसेवा में घोषित तिथि 30 अक्टूबर के पहले पुलिस ने आपा खो दिया। इस आंदोलन की पहली शहादत हमारे परिजनों की हुई। जो 22 अक्टूबर को ही हो गयी थी। हम लोगों की बहुत ग्लानि महसूस हो रही है कि जो कुछ नहीं किया हीरो-हीरोइन को बुलाया जा रहा है, जबकि शहीद कारसेवकों के परिजनों की उपेक्षा की जा रही है। आज हम लोगों के परिजनों की शहादत के कारण राममंदिर बन रहा है। उन्होंने बताया कि शहादत के बाद विश्वहिंदू परिषद की तरफ से कानपुर के गुलाब सिंह परिहार ने एक लाख की सहायता दिया था। एक लाख की सहायता तत्कालीन सरकार ने भी दिया था। शाहिद रामचन्द्र यादव के भाई मनीराम यादव ने भी निमंत्रण न मिलने पर दुःख व्यक्त किया।
0 Comments