मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक बार फिर पलटी मारने के बाद यूपी की राजनीति के समीकरण बदले हैं।यदि के साथ इंडियन नेशनल डेवलेपमेंट एनक्लुसिव एलायंस' यानी इंडिया गठबंधन की राहें अब अलग हो गई हैं और जदयू नेता ने एक बार फिर से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हाथ थाम लिया है।
बिहार के सीएम के इस कदम से पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा विरोधी पार्टियों के ऊपर कोई बहुत असर नहीं पड़ेगा।डेढ़ वर्ष पूर्व जब नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से हाथ मिलाया था तब इसे भगवा दल के विरोध और ओबीसी जातियों के एक बड़े तबके में एकजुटता की शुरुआत के रूप में देखा गया था। भाजपा पर दबाव बनाने के लिए नीतीश कुमार ने बिहार में जाति आधारित गणना करायी। इस कदम ने इंडिया गठबंधन में शामिल दलों के लिए के लिए भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए पर निशाना साधने का आधार तैयार कर दिया। इसके बाद एनडीए के खिलाफ अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को एकजुट करने के लिए समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल ने उत्तर प्रदेश में जाति जनगणना की मांग उठाई।
उत्तर प्रदेश में भाजपा के विरोध में यादव, कुर्मी, मौर्य व अन्य जातियों को लामबंद होने लगी हैं। उत्तर प्रदेश में ठाकुर मुख्यमंत्री, खत्री विधानसभा अध्यक्ष, एक उपमुख्यमंत्री ब्राह्मण, विधानपरिषद में सभापति ठाकुर, केशव मौर्य अकेले उपमुख्यमंत्री और विधानपरिषद में नेता सदन का भार उठा रहे हैं।यूपी सरकार मेंप्रभावशाली पिछड़े नेताओं का अभाव है या पिछड़ों के डमी और दलबदलू नेताओं का दबदबा है। भाजपा के कुशासन और तानाशाही से निपटने के लिये पिछड़े ने अपना एक बड़ा जनाधार तैयार किया है। यदि सपा-बसपा-कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल आपस मे उलझे बिना मिल कर यूपी में लोकसभा का आगामी चुनाव लड़ गये तो भाजपा की हालत बहुत हद तक खराब हो जायेगी। जब एक बार राज्य में भाजपा बिखरी तो खड़ा होना बहुत मुश्किल हो जायेगा। सपा मुखिया अखिलेश यादव अक्सर इस बात की चर्चा करते हैं कि 2014 में यूपी में भाजपा बढ़त के साथ घुसी थी लेकिन 2024 में भाजपा यूपी में बुरी तरह हार कर सिमट जायेगी।झूठे सपनों और वादों के साथ भाजपा ने पिछड़ों और अतिपिछड़ों को अपने पक्ष में खड़ा कर लिया था। लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 100 से ज्यादा सीट जीत कर 2017 के मुकाबले भाजपा को कड़ी टक्कर दिया है। प्रदेश में यादव के बाद सबसे मजबूत पिछड़ी जाति जिसकी संख्या पूरे प्रदेश में फैली है। वर्तमान में यूपी विधानसभा के भीतर जिस जाति के यादव से ज्यादा 41 विधायक हैं, वह कुर्मी हैं। सपा गठबंधन में 13 कुर्मी विधायक हैं जबकि भाजपा गठबंधन में 27 हैं। लेकिन सपा अपना एक राष्ट्रीय महासचिव लालजी चौधरी, प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम और दिग्गज कुर्मी नेता राम प्रसाद चौधरी को बस्ती लोकसभा से चुनाव लड़ाने का संकेत देकर कुर्मियों में अपना आधार मजबूत किया है। खेती पर आधारित किसान पृष्ठभूमि की कुर्मी जाति भाजपा सरकार में ठगी गयी है। इस लिये नीतीश कुमार के पल्टी मारने के बाद भी यूपी में कुर्मी भाजपा के साथ नहीं जायेगा।
नीतीश कुमार के जाति जनगणना वाले कार्ड ने विपक्षी दलों में भाजपा के अटूट जनाधार में सेंध लगाने की आस जगाई थी। इसी क्रम में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का नारा दे विधानसभा चुनाव 2022 में आक्रामक रुख अपना कर पिछड़ी जातियों में सेंधमारी की थीं। सामाजिक न्याय समिति-2001 की रिपोर्ट के अनुसार यूपी की कुल पिछड़ी जातियों में यादवों की हिस्सेदारी 19.40 फीसद है तो कुर्मी 7.46 फीसद हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के 26 कुर्मी विधायक और सपा के टिकट पर केवल 2 कुर्मी विधायक ही जीते थे। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के कुर्मी विधायकों की संख्या घटकर 22 रह गई। वहीं सपा के कुर्मी विधायकों की संख्या बढ़कर 14 हो गई थी।
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