प्रयागराज। शहर को खुले में शौच मुक्त के लिए नगर निगम को सरकार से ओडीएफ (ओपेन डेफिकेशन फ्री) प्लस प्लस का तमगा मिले करीब तीन-चार साल हो गए है। लेकिन, हकीकत में अब भी कई क्षेत्रों में लोग खुले में शौच के लिए मजबूर हैं। इन इलाकों में सुबह-शाम ‘लोटा पार्टी’ निकलती है। निकलने की वजह न उन लोगों के घरों में शौचालय और न ही बस्तियों में सार्वजनिक शौचालयों की व्यवस्था है। ऐसे में प्रयागराज स्वच्छता के मामले में इंदौर का पीछा कैसे कर सकेगा, यह बड़ा सवाल है।
शहर की कई मलिन बस्तियों और परेड क्षेत्र में सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था नहीं है। परेड क्षेत्र कैंटोनमेंट बोर्ड के अधीन है, इसलिए नगर निगम वहां सार्वजनिक शौचालय का निर्माण नहीं करा सकता है। लेकिन, मलिन बस्तियों में भी व्यवस्था न होना कहीं न कहीं अफसरों की इच्छा शक्ति की कमी है। परेड क्षेत्र में कैंटोनमेंट बोर्ड ने भी शौचालय का निर्माण नहीं कराया है। वहीं, परेड क्षेत्र, यमुना बैंक रोड के अलावा कई अन्य स्थानों पर बड़ी संख्या में झुग्गी-झोपड़ी वाले रहते हैं। ऐसी जगहों पर सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण न होने से लोगों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। सीमा विस्तार वाले क्षेत्रों में वार्डों का गठन हुए बगैर सार्वजनिक और व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण न होने की बात अधिकारी भी कहते हैं, क्योंकि लाभार्थियों का सत्यापन मुश्किल है। अरैल आदि क्षेत्रों में भी ‘लोटा पार्टी’ निकलती है।बहरहाल, परेड क्षेत्र में सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण की संभावनाएं तलाशने के लिए पिछले दिनों केंद्रीय टीम आई थी।टीम कैंटोनमेंट बोर्ड के सीईओ से भी मिली थी।
सार्वजनिक शौचालयों की सफाई व्यवस्था भी बदतर रहती है। सार्वजनिक शौचालयों के संचालन की जिम्मेदारी जिन संस्थाओं को निगम प्रशासन ने दिया है। वह संस्थाएं सफाई एवं जीर्णाेद्धार को लेकर गंभीर नहीं हैं। संस्थाएं शौचालयों को सिर्फ कमाई का जरिया बनाकर संचालन करती हैं। इसे महापौर अभिलाषा गुप्ता भी स्वीकार करती हैं। उनका कहना है कि एजेंसियों को संचालन की जिम्मेदारी देने के पहले अनुभव आदि का परीक्षण कर लेना चाहिए। महापौर का कहना है कि इंदौर समेत जो भी शहर स्वच्छता रैंकिंग में टाप श्रेणी में आए हैं, उन शहरों में 74 वां संविधान संशोधन लागू है। ऐसे शहरों में जनप्रतिनिधि भी हर तरह का सहयोग करते हैं। यहां जनप्रतिनिधि सब कुछ निगम के ऊपर ही छोड़ देते हैं। लोग भी सहयोग नहीं करते हैं, जबकि लोगों की सोच पर ही शहर आगे बढ़ता है।
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